NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
संघी फासीवाद के खिलाफ उठ खड़े होने वाले साहित्यकारों-कलाकारों का दृढ़ता से समर्थन करो !
सौजन्य: हस्तक्षेप
21 Oct 2015

कुलबर्गी की हत्या और दादरी काण्ड के बाद साहित्यकारों-कलाकारों के बड़े पैमाने के विरोध प्रदर्शन ने मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। इससे बौखलाकर संघियों ने साहित्यकारों-कलाकारों पर हमला बोल दिया है। मोदी सरकार के नम्बर-2 यानी अरुण जेटली ने तो इसे कागजी विद्रोह और गढ़ा हुआ विद्रोह की संज्ञा दे दी।

साहित्यकारों-कलाकारों के इस विरोध की शुरुआत 4 अक्टूबर को उदय प्रकाश द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने से हुई। उसके बाद नयनतारा सहगल ने अपना पुरस्कार लौटाया। फिर तो मानो बांध टूट गया। अब पुरस्कार लौटाने वालों की संख्या तीन दर्जन पार कर चुकी है। साहित्यकारों के अलावा ललित कला अकादमी से पुरस्कार प्राप्त और पद्मश्री सम्मानित लोग भी अब इसमें शामिल हो गये हैं। स्वयं साहित्य अकादमी से पांच लोगों ने इस्तीफा दे दिया है।

साहित्यकारों-कलाकारों का यह विरोध उस माहौल के खिलाफ है जिसका निर्माण संघी फासीवादियों के दिल्ली में सत्ताशील होने के बाद हुआ है। यह माहौल गौ-माता, लव जिहाद, घर वापसी इत्यादि-इत्यादि के नाम पर बनाया जा रहा है। इसे बनाने में संघ परिवार के सारे संगठन लिप्त है। इसमें मोहन भागवत, प्रवीण तोगडि़या से लेकर मोदी-अमित शाह तक सभी लिप्त हैं। यह थोड़े से हाशिये के तत्वों का काम नहीं है जैसा कि मोदी समर्थक पूंजीवादी प्रचारतंत्र बताने का प्रयास कर रहा है। यह संघ की मुख्यधारा का काम है। संघ के मुख पत्र पांचजन्य का ताजा अंक इस बात का प्रमाण है। जिसमें दादरी हत्या को सही ठहराया गया है। यह नहीं भूलना होगा कि लोकसभा चुनाव के दौरान स्वयं नरेन्द्र मोदी ने इसी दादरी के पड़ोस में अपने भाषण में ‘पिंक रिवोल्यूशन’ की भर्त्सना की थी। दादरी की हत्या के लिए सीधे मोहन भागवत और नरेन्द्र मोदी जिम्मेदार हैं। ये ही वह माहौल बना रहे हैं जिसमें हत्यारे बेखौफ हत्या कर रहे हैं।

इस माहौल के खिलाफ भारतीय समाज में बड़े पैमाने पर आवाज उठ रही है। उन्हीं में से एक आवाज साहित्यकारों-कलाकारों की भी है। एक लम्बे समय से घुटन-छटपटाहट महसूस कर रहे साहित्यकारों-कलाकारों  का  बांध टूट गया है और वे संघी फासीवादिया के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं।

स्वभावतः ही संघी फासीवादियों को यह गवारा नहीं है। पूरे समाज को मध्ययुगीन बर्बरता के युग में ले जाने की इच्छा रखने वाले संघी फासीवादी इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते। इसीलिए लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद पिछले दरवाजे से मंत्री बनने वाले अरुण जेटली ने, जो न्यायिक आयोग पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को ‘बिना चुने हुओं की निरंकुशता’ बता रहे हैं, इन साहित्यकारों-कलाकारों पर हमला बोल दिया है। उन्होंने इन्हें कांग्रेसी व वामपंथी समर्थक घोषित कर दिया। फिर क्या था, संघ के सारे छुटभैये साहित्यकारों-कलाकारों पर टूट पड़े। एक ने तो उन्हें दरबारी तक घोषित कर दिया।

इन बर्बर संघी फासीवादियों की बर्बरता का तो एक प्रमाण यही है कि वे अपने पक्ष में एक भी उच्च कोटि का साहित्यकार नहीं खड़ा कर सकते। उनके पक्ष में आया भी तो चेतन भगत जैसा चवन्निया लेखक जिसने अपने चवन्निया लेखक के अनुरूप ही बात की।

लेकिन संघी फासीवादियों को इसकी चिंता नहीं है। इन्हें साहित्य-कला की भी चिंता नहीं है। बर्बरों को साहित्य-कला की चिंता नहीं होती। वह तो उनके रास्त का रोड़ा ही है। और वे इस रोड़े को ठोकर मार कर हटाना चाहेंगे।

पर साहित्य-कला को फासीवाद का चिंता करनी होगी। हिटलर-मुसोलिनी का इतिहास और संघी फासीवादियों का वर्तमान व्यवहार बताते हैं कि यदि इन फासीवादियों का मुकाबला नहीं किया गया तो ये पूरे समाज को मध्ययुगीन बर्बरता के युग में ले जायेंगे। संघी फासीवादियों का निशाना केवल मुसलमान और इसाई नहीं हैं। इनका निशान समूचा सभ्य समाज है। वे समाजवाद और कम्युनिज्म के ही विरोधी नहीं हैं वे पूंजीवादी जनतंत्र के भी विरोधी हैं। वे वर्ण व्यवस्था और स्त्रियों की गुलामी के हामी हैं।

साहित्यकारों-कलाकारों द्वारा संघी फासीवाद का विरोध बहुत स्वागत योग्य कदम है। यह बौद्धिक तौर पर वह धक्का है जिसकी संघ परिवार उम्मीद नहीं कर रहा था। यह उसकी बौखलाहट से स्पष्ट है। संघी फासीवाद के खिलाफ आम लामबंदी के हिस्से के तौर पर साहित्यकारों-कलाकारों के इस विरोध का हर तरह से समर्थन किया जाना चाहिए। मजदूर वर्ग का दृढ़ समर्थन इस तरह के विरोध को और मजबूती प्रदान करके उसे आगे बढ़ायेगा।

सौजन्य: हस्तक्षेप

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख में वक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारों को नहीं दर्शाते ।

कालबुर्गी
पानसरे
दाभोलकर
नयनतारा सहगल
उदय प्रकाश
भाजपा
आरएसएस

Related Stories

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

बढ़ते हुए वैश्विक संप्रदायवाद का मुकाबला ज़रुरी

यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा भी बोगस निकला, आप फिर उल्लू बने

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

आरक्षण खात्मे का षड्यंत्र: दलित-ओबीसी पर बड़ा प्रहार

झारखंड बंद: भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त विरोध

एमरजेंसी काल: लामबंदी की जगह हथियार डाल दिये आरएसएस ने

झारखण्ड भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल, 2017: आदिवासी विरोधी भाजपा सरकार

यूपी: योगी सरकार में कई बीजेपी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License