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भारत
राजनीति
संविधान और जन अधिकारों पर हमलों  के ख़िलाफ़ एआईपीएफ का जन कन्वेन्शन
मौजूदा संगीन हालात ने लोकतंत्र पसंद ताक़तों को काफ़ी बेचैन कर दिया है। अंध उन्मादी मानस तैयार कर देश के संघीय–लोकतांत्रिक ताने बाने पर निरंतर किए जा रहे हमले सबकी चिंता–विमर्श का केंद्रीय मुद्दा बन गए हैं। इसी संदर्भ में 17-18 अगस्त को छत्तीसगढ़ के दुर्ग शहर स्थित तीर्थराज सभागार में ऑल इंडिया पीपल्स फ़ोरम आयोजित राष्ट्रीय परिषद की बैठक की गयी। साथ ही 18 अगस्त को राष्ट्रीय जन कन्वेन्शन किया गया। 
अनिल अंशुमन
22 Aug 2019
indian constitution

"बदलते भारत में संविधान और जन अधिकारों पर हमला: हमारा हस्तक्षेप और विकल्प” पर केन्द्रित इस जन कन्वेंशन में फ़ोरम के विभिन्न राज्यों से आए प्रतिनिधियों के अलावे छत्तीसगढ़ के कई वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता–बुद्धिजीवी , मीडियाकर्मी, सामाजिक जन संगठनों और नागरिक समाज प्रतिनिधियों के अलावे भिलाई स्टील के मजदूर यूनियनों के नेता–मज़दूर इत्यादी भी शामिल हुए। 

कन्वेन्शन को संबोधित करते हुए फ़ोरम केंद्रीय सचलन कमेटी की कविता कृष्णन ने मौजूदा हालात को देखनेसोचने में सतर्क रहने पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, "सरकार ‘दुश्मन का जलता घर‘ दिखाने का भ्रम फैलाकर आपसे तालियाँ बजवा रही है और हक़ीक़त में आपका ही घर जला रही है।" कश्मीर गयी जांच–टीम के सदस्य के बतौर वहाँ की वर्तमान भयावह स्थितियों की जानकारी देते हुए बताया कि किस प्रकार से वहाँ के लोगों को बदमाश साबित करके धारा 370 समेत तमाम संवैधानिक प्रावधानों को खत्म कर दिया गया।

उन्होंने आगे कहा, "केंद्र की सरकार कश्मीर मुद्दे पर तालियाँ तो बजवा रही है , लेकिन वहाँ के लोग पूछ रहें हैं कि उन्हें क़ैद में क्यों रखा जा रहा है? वहाँ सेना क्यों है? तमाम संचार माध्यम को ठप्प कर उन्हें पूरी दुनिया से काट दिया गया है? उनके बच्चों को उठाकर थानों में रख दिया गया है? सरकार देश लूटने वालों को दोस्त बता रही है और एनआरसी के बहाने मुसलमानों की नागरिकता पर सवाल खड़े कर उन्हें दुश्मन बताकर नफ़रत–उन्माद फैला रही है।

हमें सतर्क होने की ज़रूरत है क्योंकि 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने परिवार नियोजन के बहाने देशभक्ति की एक नयी परिभाषा दी है। जिसमें अगर देश से प्यार है तो परिवार छोटा रखने के बहाने देश के मुसलमानों को टारगेट किया है। यानी देश के अमीरों के परिवार बड़े रहें और गरीब अपना परिवार छोटा रखें। दिनरात टेलीविज़न से इनके नेताओं द्वारा परोसी जा रही नफरत से भी हमें सतर्क रहना होगा। कश्मीर को लेकर संसद तक में कब्जा करनेवालों और लुटेरों की भाषा खुद गृहमंत्री बोल रहें हैं कि – मैं जो कहूँगा वह सुनना होगा।"

कविता कृष्णन ने आगाह करते हुए कहा कि कश्मीर की भांति कल को छत्तीसगढ़–झारखंड जैसे सामाजिक विशिष्टता वाले राज्यों को भी ख़त्म करने की दिशा में यह सरकार बढ़ रही है। साथ ही आनेवाले समयों में एसटी–एससी के विशेषाधिकारों को भी समाप्त करने की साजिशें हो रहीं हैं। ऐसे में एकजुट प्रतिरोध संघर्ष ही हमारी ताक़त बरकरार रख सकता है।        

दिल्ली से आए वरिष्ठ पत्रकार–सामाजिक कार्यकर्त्ता जॉन दयाल ने कहा, "देश के संविधान ने जो नागरिक अधिकारों का अश्वाशन हमें दिये हैं, कश्मीर मामले ने दिखला दिया है कि किस तरह वह टूटा है। देश के अल्पसंख्यकों को शिक्षा प्रसार का आश्वासन मिला था लेकिन संविधान को ताख पर रखकर उसे भी तोड़ दिया गया और जय श्रीराम का सांप्रदायिक विभाजन कर दिया गया है। नयी शिक्षा नीति लाकर पूरी शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया गया है। एनआरसी के नाम पर परिवारों तक को तोड़कर जेलों में डाला जा रहा है और सारे अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों पर हमला बोलकर उन्हें अपने ही देश में दुश्मन बताया जा रहा है।" 

जाने माने आंदोलनकारी व फ़ोरम के राष्ट्रीय नेता सुनीलम ने फ़ोरम की बैठक में लिए गए आंदोलन के प्रस्तावों की जानकारी देते हुए कहा, "यह प्रचंड बहुमत की नहीं बल्कि ईवीएम की सरकार है। जो अब पूरे सुनियोजित ढंग से देश के संविधान–लोकतंत्र को खत्म करने पर तुली हुई है। काश्मीर का जो हाल किया है अब वही हाल बस्तर–छत्तीसगढ़ इत्यादि इलाकों का भी करेगी। ऐसे में राजनीतिक दलों के भरोसे रहने की बजाय देश जनता को ख़ुद एक नए विकल्प की तैयारी करनी होगी। जिसके लिए गाँव गांव जाकर लोगों को तैयार तैयार करना होगा और हम में से हर एक को कुछ न कुछ अपनी तय करनी होगी।"

ऐपवा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रतिराज ने कहा, "मोदी जी का फ़ास्ट ट्रैक विकास केवल मंदी और विनाश ला रहा है। इनके नेताओं की ओछी मानसिकता कश्मीरी बच्चियों को लेकर दिये जा रहे घृणित बयानों में दिखता है और मोदी 15 अगस्त को लाल किले से महिला सा सशक्तिकरण कि बात करते हैं।"

सामाजिक कार्यकर्त्ता बेला भाटिया ने केंद्र की सरकार पर लोकतन्त्र को ख़त्म कर मिलिट्राइज़ेशन राज थोपने का आरोप लगाते हुए कहा कि जहां-जहां राष्ट्रीयताओं का आंदोलन चल रहा है उसे देश विरोधी क़रार देकर कुचला जा रहा है। बस्तर में अर्ध सैन्य बलों की दमनकारी स्थितियों को सामने लाते हुए उनकी कानून सम्मत जवाबदेही तय करने की भी बात कही।

भिलाई हिंदुस्तान स्टील इंपलाइज़ यूनियन (सीटू) के मज़दूर नेता डीबीएस रेड्डी ने कहा, "ऐसे अजीबो ग़रीब और डरावने हालत पैदा किए जा रहें हैं जिसमें संसद तक की भाषा बादल गयी है। गृहमंत्री सदन में दादागिरी के अंदाज़ में बात करते हैं। लोगों का ध्यान इस पर नहीं जाये इसके लिए तरह तरह से भटकाया जा रहा है। ऐसे में वाम जनवादी व लोकतन्त्र पसंद ताक़तों को छोडकर कोई भरोसेमंद विकल्प नहीं हो सकता।"

जन कन्वेन्शन को छत्तीसगढ़ नागरिक सहयोग समिति के अखिलेश एडगर , छत्तीगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन के आई के वर्मा, हिन्द मज़दूर सभा के वज़ी अहमद तथा आम आदमी पार्टी की अर्शिया आलम समेत कई अन्य वक्ताओं ने भी संबोधित किया। कन्वेन्शन का संचालन फ़ोरम की छत्तीसगढ़ इकाई के बृजेन्द्र तिवारी ने किया। जन संस्कृति मंच के कलाकारों ने जोशीले जनगीत प्रस्तुत किए। 

कन्वेन्शन में 17–18 अगस्त को सम्पन्न फ़ोरम राष्ट्रीय परिषद की बैठक में तय किए गए विभिन्न आंदोलनात्मक कार्यक्रमों को प्रभावी बनाते हुए आगामी 2 अक्तूबर को “गांधी जी को जानो” कार्यक्रम को पूरे देश में ज़ोर शोर से आयोजित करने का आह्वान किया गया।

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