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सऊदी अरामको की रस्साकशी में कौन जीता? कौन हारा?
पूरा ध्यान यमन में युद्ध को कम करने पर होना चाहिए जहां रियाद और अबू धाबी के लिए सबसे ज़रूरी चीज ये है कि वे ईरान के साथ बातचीत करे।
एम. के. भद्रकुमार
17 Sep 2019
Translated by महेश कुमार
Winners and Losers from Saudi
Image courtesy:News Digest

अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल का दाम 16 सितंबर 2019 को एशिया में 11.73 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के मुकाबले 71.95 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल के बेंचमार्क पर खुला।

अरामको सऊदी के दो प्लांट में हुए हमले को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रविवार को निम्न ट्वीट किए:

 “सऊदी अरब की तेल की आपूर्ति पर हमला किया गया है। इसके हमले के कारण स्पष्ट हैं, हम जानते हैं कि अपराधी कौन हैं, हमने उसकी पहचान कर ली की है, लेकिन हम यह सऊदी से सुनने का इंतजार कर रहे हैं कि वे किसे हमले का कारण मानते हैं, और हम किन शर्तों के आधार पर सहायता के लिए आगे बढ़ेंगे!"

यह कई लोगों को ध्यान में रख कर गढ़ा गया है जिसमें शब्दों का चालाकी से इस्तेमाल किया गया है। ट्रम्प ने इस प्रतिक्रिया को देने से पहले कुछ समय ज़रुर लिया। और वे ईरान को सीधा दोष देने से रुक गए। अमेरिका के पास ठोस सबूतों का अभाव है। इसलिए, उनके "सत्यापन" की आवश्यकता आन पड़ी है और यह रियाद का ही आहवान है कि इस हमले के नतीजों  “का अनुमान लगाया जाए और हम किन शर्तों के आधार पर आगे बढ़ेंगे।"

ट्रम्प ने दावा किया कि सऊदी अरब की सहायता के लिए अमेरिका "लॉक और लोड" के साथ पूरी तरह तैयार है यानि पूरी तरह से तैयार है। फिर भी, कुछ दिनों पहले जब ट्रम्प ने सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को फोन किया तो उन्होंने "इस तरह के आतंकवादी हमले को विफल करने और इसके परिणामों से निपटने के लिए किंगडम की इच्छा और शक्ति पर ज़ोर दिया था।"

वास्तव में, यह अब सऊदी का प्रण है – कि इस संकट से निबटने के लिए सऊदी के भीतर पूरी क्षमता है। यूएई क्राउन प्रिंस के फोन कॉल के दौरान ड्रोन हमलों की निंदा की गई और ज़ोर देकर कहा गया कि "किंगडम के भीतर इस तरह के आतंकवादी हमले का सामना करने और निपटने की क्षमता है।" किंग सलमान ने कुवैत के अमीर को भी बताया कि किंगडम में आतंकवादी हमला का जवाब देने और उसके नतीजों से निपटने का माद्दा है।”

किसी भी क्षेत्रीय देश- मिस्र, यूएई, कुवैत, बहरीन, जॉर्डन, तुर्की, आदि ने - या किसी भी विदेशी शक्ति ने ईरान को सऊदी अरामको प्लांट पर हुए ड्रोन हमलों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया है। इस दोषारोपण में अमेरिकी राज्य सचिव माइक पोम्पेओ अकेले खड़े है।

दिलचस्प बात यह है कि, मोहम्मद बिन सलमान ने रविवार को रूसी राजदूत सर्गेई कोज़लोव की आगवानी की। इस बाबत कोई जानकारी जारी नहीं की गई; सऊदी ने केवल इतना कहा कि "दोनों मित्र देशों के बीच आपसी हितों के कई मुद्दों पर चर्चा की गई।"

बेशक, यह रूसी हित में है कि इस क्षेत्रीय तनाव को टाल दिया जाए क्योंकि मास्को और तेहरान निकट संपर्क में हैं। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आज तुर्की के अस्ताना शिखर सम्मेलन में त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन के मौके पर ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी से मिलने वाले हैं। अक्टूबर में सऊदी अरब की यात्रा पर भी पुतिन आएंगे।

हालांकि, यह असंभव लगता है कि सउदी अमेरिका को इसमें शामिल करना चाहेगा। दोनों में विश्वास का स्तर काफी कम है जो साफ है। (ट्रम्प प्रशासन ने उन सऊदी अधिकारी की पहचान को सार्वजनिक करने का निर्णय लिया है जिन्होंने कथित तौर पर 9/11 आतंकवादियों की मदद की थी।)

समय आने पर सऊदी अरब की रक्षा करने के लिए अमेरिका के धैर्य और प्रतिबद्धता के प्रति सऊदी का विश्वास डगमगा गया है। वाशिंगटन बेल्टवे में रियाद का दबदबा काफी कम हो गया है। ऐसा खासकर जमाल खशोगी की हत्या के बाद हुआ है। अमेरिकी कांग्रेस की मनोदशा शत्रुतापूर्ण है।

फिर, अत्यधिक संवेदनशील पहलू यह हैं कि रियाद खुद हालत को संभालना चाहता है। ड्रोन हमलों के बारे में हौथिस ने सऊदी अरब के भीतर "खुफिया सहायता और सहयोग" देने का दावा किया है। यदि ऐसा है तो हाउथिस के सऊदी अरब के पूर्वी प्रांत के अंदर संपर्क हैं जहां शिया बहुमत आबादी है और वे अपने अधिकार और स्वायत्तता के लिए आंदोलन कर रहे है।

रियाद गहरी जांच करना चाहेगा, लेकिन सीआईए के बिना वह खुद इसे करना चाहेगा- क्योंकि यह अंततः राज्य की आंतरिक सुरक्षा और एकता और शाही परिवार की किस्मत का मामला है।

शनिवार के हमलों से पता चलता है कि सऊदी रक्षा ढांचा अत्यधिक असुरक्षित है। अमेरिका के किसी भी हमले के कारण ईरान के साथ सैन्य टकराव हो सकता है और किंगडम की बर्बादी का बड़ा कारण बन सकता है।

यूएई (और अन्य जीसीसी देशों) भी भविष्य में किसी भी तरह के टकराव के ख़िलाफ़ है। हाल के हफ्तों में, सऊदी अरब और यूएई दोनों ने ईरान की ओर अपना रुख किया है, जिसका उद्देश्य तनाव को कम करना है।

फिर भी एक शिकन का मसला यह है कि यमन को लेकर सऊदी और एमीरेट्स के बीच मतभेद सामने आए हैं, दक्षिणी यमन में सऊदी छद्म सैन्य शक्ति प्रॉक्सी मिलिशिया समूहों के माध्यम से मंसूर हादी के नेतृत्व वाली सरकार (जिसे रियाद का संरक्षण हैं) को अधीन करने की फिराक़ में है।

उससे भी ऊपर, अरामको का आईपीओ अब अधर में लटक गया है – इसलिए स्ऊदी क्राउन प्रिंस का विज़न 300 कार्यक्रम जो देश की अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन और जरूरी सुधारों के लिए था अपना आकर्षण खो रहा है।

शनिवार की घटनाओं से पता चलता है कि अगर कोई भी क्षेत्रीय टकराव पेट्रोडॉलर वाले देशों को नष्ट करने की कोशिश करता है तो विश्व अर्थव्यवस्था भारी संकट में पड़ जाएगी। ब्रेंट क्रूड रविवार रात 20 प्रतिशत अधिक उछल गया था।

यदि सऊदी का भंडार महीनों तक रह सकता है, जैसा कि संभावना है, तो उम्मीद है कि ब्रेंट का हमला तब तक जारी रहेगा जब तक कि कीमत 80 डॉलर  तक नहीं पहुंच जाती, और उपर ही जाती रहेगी। ईरान का यह कहना काफी है कि सैन्य टकराव में हारने वाला केवल ईरान नहीं होगा, इस ख़तरे को बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए। आईआरजीसी ने रविवार को इस बात को दोहराया है।

तेहरान कभी भी इस पर टिप्पणाी करने से नहीं चुकता है: अ) यह फारस की खाड़ी में स्थिरता का एक कारक हो सकता है; और, ख) क्षेत्रीय सुरक्षा को विशेष रूप से क्षेत्रीय राज्यों द्वारा बातचीत के माध्यम से करना चाहिए।

रविवार को रूहानी की पहली महत्वपूर्ण विस्तृत टिप्पणी इसी विचार पर आधारित है। सऊदी अरब, यूएई और ईरान के बीच संपर्कों को खारिज नहीं किया जा सकता है।

लब्बोलुआब यह है कि सऊदी और एमीरेट्स ने ईरान के ख़िलाफ़ अधिकतम दबाव ’का रास्ता अपनाने के लिए ट्रम्प को राजी किया है, लेकिन जैसा कि वे आज जो रसातल उन्हें नज़र आ रहा हैं, वह उसे देखना  पसंद नहीं करते हैं।

सऊदी पाइपलाइनों, जहाजों और अन्य ऊर्जा संरचना पर हमलों के पीछे हाउथिस का हाथ रहा है। हाउथिस के एक प्रवक्ता ने कहा, "हम सऊदी शासन से कहते हैं कि भविष्य में हमले बढ़ेंगे  और अधिक दर्दनाक होता जाएगा जब तक आपकी आक्रामकता और घेराबंदी जारी रहेगी।" ध्यान यमन में युद्ध को कम करने पर होना चाहिए, जहां तेहरान के साथ बातचीत के लिए यह रियाद और अबू धाबी के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है।

Courtesy: INDIAN PUNCHLINE

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