NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
भारत
राजनीति
जन्मदिन विशेष : क्रांतिकारी शिव वर्मा की कहानी
शिव वर्मा के माध्यम से ही आज हम भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राजगुरु, भगवती चरण वोहरा, जतिन दास और महाबीर सिंह आदि की कमानियों से परिचित हुए हैं। यह लेख उस लेखक की एक छोटी सी कहानी है जिसके बारे में देश बहुत कम जानता है।
हर्षवर्धन
09 Feb 2022
जन्मदिन विशेष : क्रांतिकारी शिव वर्मा की कहानी

आजादी के बाद भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद आदि क्रांतिकारियों के नाम तो जनमानस में थे लेकिन ये क्रांतिकारी क्या सोचते थे, उनकी विचारधारा क्या थी और उन लोगों ने कैसे समाज की कल्पना करते हुए मौत का आलिंगन किया था। इसके बारे में जनता को नहीं के बराबर जानकारी थी। शिव वर्मा वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भगत सिंह के लेखों और हिंदुस्तान समाजवाद प्रजातान्त्रिक संघ (हिसप्रस) के दस्तावेजों को संग्रह कर लिपिबद्ध किया और देश को उनके विचारों से अवगत कराया। शिव वर्मा के माध्यम से ही आज हम भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राजगुरु, भगवती चरण वोहरा, जतिन दास और महाबीर सिंह आदि की कमानियों से परिचित हुए हैं। यह लेख उस लेखक की एक छोटी सी कहानी है जिसके बारे में देश बहुत कम जानता है।

क्रांतिकारियों के बीच छद्म नाम 'प्रभात' से जाने जाने वाले शिव वर्मा का जन्म 9 फरवरी सन 1904 में हरदोई जिले के ‘कलौरी’ नामक गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम कुन्ती देवी और पिता का नाम कन्हैया लाल वर्मा था, जो पेशे से वैद्य थे। शिव वर्मा की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा हरदोई जिले में ही एक सरकारी स्कूल में हुई।

यूँ तो शिव वर्मा का राजनीतिक जीवन में प्रवेश सन 1921 में असहयोग आंदोलन से हुआ जब वह मात्र 17 वर्ष के थे। लेकिन उनमें राजनीतिक चेतना का विकास सन 1917 से ही होने लगा था जिसका श्रेय उन्होंने कानपुर से निकलने वाले अख़बार 'प्रताप' को दिया। उनके गांव में उस वक़्त सिर्फ यही एक अख़बार आता था जिसमें रूसी क्रांति, देश विदेश की घटनाओं और उस वक़्त की स्थिति में 'नौजवानों को क्या करना चाहिए’ आदि विषयों पर लेख छपते थे।   

जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की घोषणा की तब शिव वर्मा के बड़े भाई शिवनारायण वर्मा, जो कांग्रेस के सदस्य भी थे, स्कूल छोड़ कर आंदोलन में शामिल हो गए। उनको चार दिनों बार गिरफ्तार कर लिया गया। बड़े भाई के गिरफ़्तारी के बाद शिव वर्मा ने कांग्रेस में उनकी ज़िम्मेदारी संभाल ली। असहयोग आंदोलन के वापसी से शिव वर्मा को धक्का तो लगा लेकिन वह कांग्रेस में काम करते रहे। असहयोग आंदोलन के कुछ समय बाद ही हरदोई और आसपास के जिलों में किसान नेता मदारी पासी के नेतृत्व में 'एका आंदोलन' की शुरुआत हुई। शिव वर्मा इस आंदोलन से जुड़ गए। इस आंदोलन में सभी धर्म और जाति के लोग शामिल हुए। आगे चलकर यह आंदोलन काफी तेज हो गया जिसकी वजह से अंग्रेजी सरकार ने इसके ऊपर भीषण दमन चक्र चलाया। किसानों पर तरह-तरह के मुक़दमे लाद दिए गए और हालात ये हो गए थे कि किसानों को कोई वकील नहीं मिल रहा था और कोई अख़बार भी उनकी खबर छापने को तैयार नहीं था।

एका आंदोलनकारियों के लिए मदद मांगने शिव वर्मा 1923 के कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में शामिल हुए। वहां उनकी मुलाकात मदन मोहन मालवीय और स्वामी सत्यव्रत से हुई। शिव वर्मा ने उनको 'एका'  किसानों पर हो रहे अत्याचारों के बारे में बताया लेकिन उनको निराशा ही हाथ लगी। ऐसे में उनको  'प्रताप' और उसके संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी की याद आयी। विद्यार्थी किन्हीं कारणों से उस अधिवेशन में नहीं शामिल हो पाए थे इसलिए ऐ शिव वर्मा ने कानपुर जा कर उनसे मिलने का निर्णय लिया। वहां जाकर उन्होंने गणेश शंकर विद्यार्थी को 'एका आंदोलन' की पूरी कहानी सुनाई जिसको सुनने के बाद  विद्यार्थी जी ने 'एका' की कहानी को अपने अख़बार में छापने का निर्णय लिया। 

इस मुलाकात के दो साल बाद शिव वर्मा हाई स्कूल पास कर एक बार फिर कानपुर पहुंचे और डी.ए.वी कालेज में इंटरमीडिएट प्रथम वर्ष में दाखिला लिया। कालेज में ही उनकी मुलाकात सुरेंद्र पाण्डेय और गोविन्द चरण मिश्रा से हुई। 1925 में हुए काकोरी रेल कांड के बाद उनकी मुलाकात सुरेंद्र पाण्डेय के माध्यम से विजय कुमार सिन्हा आदि नौजवानों से हुई। फिर  उन्होंने सन 1926 में 'हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन' की विधिवत सदस्यता ली। विजय कुमार सिन्हा के माध्यम से ही शिव वर्मा की मुलाकात राधा मोहन गोकुल से हुई। राधा मोहन गोकुल हिंदी के एक वरिष्ठ पत्रकार और साम्यवादी विचारक थे। उन्होंने साम्यवाद और अनीश्वरवाद पर कई लेख और किताबे लिखी थीं। शिव वर्मा,  भगत सिंह आदि क्रांतिकारियों पर उनका काफी प्रभाव पड़ा था।   

क्रांतिकारी पार्टी में शामिल होने के बाद शिव वर्मा की मुलाकात भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, भगवती चरण वोहरा, चंद्रशेखर आज़ाद आदि  से हुई। इसी दौरान वे काकोरी मुक़दमे में अभियुक्त राम प्रसाद बिस्मिल से भी जेल में मिले। वहीं बिस्मिल ने उनको अपनी आत्मकथा सौपी थी और साथ ही साथ संगठन के हथियारों, धन और ठिकानों के बारे में बताया था।  

काकोरी अभियुक्तों को फांसी और जेल की सजा के बाद क्रांतिकारी दल का पुनर्गठन हुआ जिसमें शिव वर्मा ने अहम् भूमिका निभाई। भगत सिंह का प्रस्ताव था की 'हिंदुस्तान प्रजातान्त्रिक संघ' का नाम बदल कर 'हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातान्त्रिक संघ' किया जाये और समाजवाद को दल का लक्ष्य घोषित किया जाये। इस प्रस्ताव को दल के हर प्रांतीय संगठन को भेजा गया। चार प्रांतों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया सिवाए बंगाल  के। वहां के नेताओं के पास शिव वर्मा को दल की तरफ से बात करने के लिए भेजा गया लेकिन निष्कर्ष कुछ नहीं निकला। 

8-9 सितम्बर 1928 में फिरोज शाह कोटला में हुई ऐतिहासिक बैठक में शिव वर्मा भी शामिल हुए और उनको केंद्रीय कमिटी का सदस्य तथा संयुक्त प्रान्त (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) का संगठनकर्ता नियुक्त किया गया। शिव वर्मा एक सफल संगठनकर्ता के साबित हुए। उन्होंने संयुक्त प्रान्त के कई जिलों में दल का केंद्र स्थापित किया और नए सदस्यों की भर्ती की।  

भारत में बढ़ते मज़दूर आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार ने 1929 में 'ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल' और 'पब्लिक सेफ्टी बिल' लाने का फैसाल किया। हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ के क्रांतिकारियों ने इन दमनकारी कानूनों के विरोध में 8 अप्रैल को असेंबली में धुंए वाला बम फेंकने का निश्चय किया जिसको भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने अंजाम दिया। बम फेके जाने से पहले संगठन ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के फोटो खिचवाने का निश्चय किया।  फोटो कश्मीरी गेट के एक सरकारी फोटोग्राफर ने खींची थी। उनके फ़ोटो ने नेगटिवेस शिव वर्मा ने ही फोटोग्राफर के पास से लिए थे।       

असेंबली बम कांड के बाद शिव वर्मा और उनके साथी जयदेव कपूर और राजगुरु को पता चला कि वाइसराय दिल्ली आ रहा है।  तीनों ने वाइसराय को मारने की योजना बनाई और बम और पिस्तौल लेकर निकल पड़े। लेकिन यह योजना सफल नहीं हो पायी। इसके बाद उनको पता चला कि वाइसराय शिकार खेलने देहरादून जा रहा है। तीनो साथी और चंद्रशेखर आज़ाद वाइसराय को मारने के मकसद से देहरादून निकल गए लेकिन  पुलिस को इसकी भनक लग गयी और इन लोगों को अपना  योजना स्तगित करनी पड़ी।  

असेंबली बम कांड के बाद शिव शर्मा और बाकी क्रांतिकारी भूमिगत हो गए। दल का मुख्यालय आगरा से सहारनपुर स्थान्तरित कर दिया गया। शिव वर्मा और उनके दो साथी, जयदेव कपूर और डॉ गया प्रसाद सहारनपुर में ही रहने लगे। इसी दौरान असेंबली बम कांड की तहकीकात करते हुए अंग्रेजी पुलिस ने लाहौर के एक मकान पर छापा मारा जहाँ से सुखदेव और अन्य क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया। उधर सहारनपुर में पुलिस को तीनों क्रांतिकारियों पर शक हो गया जिसके बाद एक छापे में उनको गिरफ्तार कर लिया गया। असेंबली बम कांड के तहकीकात के दौरान ही अंग्रेजी पुलिस ने क्रांतिकारियों के तार सांडर्स वध से भी जोड़ लिए थे जिसके बाद सभी क्रांतिकारियों पर लाहौर षडयन्त्र केस चलाया गया। 

शिव वर्मा पर भी केस चला और उनको लाहौर जेल ले जाया गया। वहीं वे क्रांतिकारियों की ऐतिहासिक भूख हड़ताल में शामिल हुए। इस केस में भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को फांसी और बाकी क्रांतिकारियों को काले पानी की सज़ा हुई। इनमें शिव वर्मा भी शामिल थे।      

शिव वर्मा और उनके अन्य साथियो को अंडमान जेल ले जाया गया जहाँ  कैदियों पर भीषण अत्याचार होते थे। उनको कोल्हू में जोतकर तेल निकलवाया जाता था, बहुत ही घटिया खाना दिया जाता था, रहने की कोठरियां बदबूदार थीं जो बारिश में भर जाती थी। जब लाहौर षडयंत्र के कैदी अंडमान पहुँचे तो  वे  जेल अधिकारियों के क्रूर रवैये के विरोध और राजनैतिक कैदियों के अधिकारों के लिए पहले से चल रहे भूख हड़ताल में शामिल हो गए।  अपने अधिकरों की लड़ाई लड़ते हुए इन लोगो ने पढाई लिखाई का जो सिलसिला लाहौर षड्यंत्र मुक़दमे के दिनों के दौरान  शुरू किया था उसको अंडमान में भी जारी रखते हुए आगे बढ़ाया।  जेल में हिसप्रस के सदस्यों ने अगुआई में ‘कम्युनिस्ट कंसोलिडेशन’ की स्थापना हुई  जिसका उद्देश्य बंद साथियों में मार्क्सवादी राजनैतिक चेतना का विकास करना था। इसमें इन लोगों काफी सफलता मिली।  इस कंसोलिडेशन के माध्यम से अंडमान जेल में बंद कई क्रांतिकारी वाम विचारों को तरफ आकर्षित हुए और आगे चल कर वाम आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। शिव वर्मा उस कम्युनिस्ट कन्सोलोडेशन के एक प्रमुख सदस्य थे।

कई भूख हड़तालों और कड़े संघर्षो के बाद आखिरकार शिव वर्मा और उनके बाकि साथियों को अंडमान की काल कोठरी से सन 1938 में मुक्ति मिली। उनको अंडमान जेल से दमदम जेल, फिर लाहौर जेल ले जाया गया और आखिरकार लखनऊ के जिला जेल में स्थान्तरित कर दिया गया।  यहाँ भी शिव वर्मा ने मार्क्सवादी पढाई-लिखाई का सिलसिला जारी  रखा और उन्होंने अध्ययन केंद्र (स्टडी सर्किल) चलाए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय शिव वर्मा को नैनी जेल भेज दिया गया जहाँ वह 1946 तक रहे। यहाँ भी मार्क्सवादी साहित्य के अध्ययन का सिलसिला जारी रहा।  1946 में उनको हरदोई जेल भेज दिया गया जहाँ से वो आखिरकार बंदी जीवन से मुक्त हुए।  

आज़ादी के बाद का जीवन       

जेल से रिहा होने के बाद सन 1947 में शिव वर्मा ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली और मज़दूर संगठन में काम करना शुरू कर दिया।  इसके साथ ही साथ शिव वर्मा ने कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं के वैचारिक विकास के लिए कई पार्टी-स्कूलों का संचालन किया। 1948 में वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उत्तर प्रदेश राज्य के सचिव चुने गए। आज़ाद भारत में भी उनको फरार का जीवन जीना पड़ा और कई जेल यात्राएं करनी पड़ी। इन सब के बावजूद उनका साम्यवाद पर भरोसा अडिग रहा और वे एक शोषण मुक्त समाज के निर्माण के लिए लड़ते रहे।

शिव वर्मा अपने कॉलेज के दिनों से ही लिखने पढ़ने में रूचि रखते थे। क्रांतिकारी जीवन के शुरुआत में वे दिल्ली से निकलने वाली पत्रिका 'वैभव', हरदोई से निकलने वाली पत्रिका 'आर्यकुमार' और 'प्रताप' में बतौर संवाददाता काम कर चुके थे। मशहूर हिंदी पत्रिका 'चाँद'  के फँसी अंक के लिए उन्होंने कई क्रांतिकारियों की जीवनी लिखी थी। आज़ादी के बाद भी उनकी यह रूचि जारी रही। वो कम्युनिस्ट पार्टी का सैद्धांतिक मुख्यपत्र 'न्यू ऐज' के सम्पादकीय विभाग में रहे। उन्होंने 1953 में एक प्रगतिशील हिंदी पत्रिका 'नया पथ' का संपादन किय। 

शिव जी ने साम्यवादी विचारधारा को आम जनता कर पहुंचाने के लिए पांच भागों में 'मार्क्सवादी क्या चाहते है?' नाम की पुस्तक माला लिखी। 1962 में जब कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन हुआ तब शिव वर्मा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में आ गए और नई पार्टी के हिंदी मुख्यपत्र 'लोक लहर' के संपादक बनाये गए। 1963 में ही उन्होंने 'संस्मृतियाँ' नाम की एक पुस्तक लिखी जिनमें सात क्रांतिकारियों की कहानियां हैं। यह पुस्तक क्रांतिकारियों पर लिखी गयी सबसे बेहतरीन पुस्तकों में से एक हैं।

अंडमान के दिनों में भीषण अत्याचारों का शिव वर्मा के स्वस्थ्य पर बहुत ख़राब प्रभाव पड़ा था। उनकी एक आँख की रोशनी जाती रही थी और स्वास्थ्य ख़राब रहने लगा था। सन 1981 में उन्होंने सक्रिय राजनीती से संन्यास ले लिया और अपना जीवन क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास के संयोजन में लगा दिया। अपनी सह-क्रांतिकारी दुर्गा भाभी के सहयोग से स्थापित ''शहीद स्मारक एवं स्वतंत्रता संग्राम शोध केंद्र'' के वह सक्रिय हुए और अपने क्रांतिकारी साथियों के जीवन पर पड़ी धूल को हटाना शुरू किया।  जीवन के अंत तक वे अपने साथी भगत सिंह के सपने को साकार करने के लिए कार्य करते रहे। 

उनकी की मृत्यु 10 जनवरी सन 1997 को हुई।

(लेखक जेएनयू के शोधार्थी हैं।)

shiv verma
Bhagat Singh
sukhdev
Rajguru
writer shiv verma
communist party of india shiv verma

Related Stories

आंदोलन: 27 सितंबर का भारत-बंद ऐतिहासिक होगा, राष्ट्रीय बेरोज़गार दिवस ने दिखाई झलक

विशेष: जब भगत सिंह ने किया किसानों को संगठित करने का प्रयास

शहीदे-आज़म भगत सिंह की स्पिरिट आज ज़िंदा हो उठी है किसान आंदोलन में

किसान आंदोलन: शहीद यादगार किसान-मज़दूर पदयात्रा की हांसी से हुई शुरूआत

23 मार्च के शहीदी दिवस के मद्देनज़र किसान-मज़दूर निकालेंगे पदयात्रा

कोरोना के कारण ‘समाजवादी विचार यात्रा’ के पहले चरण का सेवा आश्रम में समापन

सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रतीक बना नमक

डीयू : बढ़ते विरोध के बाद सावरकर की प्रतिमा हटाई गई

डीयू त्रिमूर्ति विवाद : सावरकर का भगत सिंह और नेताजी से क्या लेना-देना?


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License