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कोविड-19
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कोविड-19 : संक्रमण से लड़ने में चीन और अमेरिका की रणनीति में क्या अंतर है?
कोविड-19 से लड़ने की अपनी ख़राब रणनीति की वजह से अमेरिका लगातार इसके विनाशकारी असर को झेल रहा है जबकि अपने लोगों को केंद्र में रख कर बनाई गई चीन की नीति आदर्श स्ट्रेटजी बन कर उभरी है।
विजय प्रसाद, जॉन रॉस
17 Sep 2020
कोविड-19 :  संक्रमण से लड़ने में चीन और अमेरिका की रणनीति में क्या अंतर है?

‘वाशिंगटन पोस्ट’ के रिपोर्टर बॉब वुडवर्ड ने फरवरी और मार्च में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का इंटरव्यू का लिया था। इंटरव्यू कोरोना वायरस के संक्रमण पर था। वुडवर्ड ने अपनी नई किताब ‘Rage’ में इस इंटरव्यू का हवाला देकर लिखा है कि ट्रंप ने माना था कि यह संक्रमण काफी गंभीर किस्म का था लेकिन वह इसके खतरे को ज्यादा तवज्जो नहीं देना चाहते थे। ट्रंप ने उस समय वुडवर्ड से कहा था, “ मैं हमेशा से इस मामले को थोड़ा दबा कर रखना चाहता था क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि इससे दहशत फैले’’। इस संक्रमण के बारे में चीनी अधिकारियों की ओर से लगातार दी जा रही चेतावनियों के बावजूद ट्रंप और उनके स्वास्थ्य मंत्री एलेक्स अजार इस वैश्विक महामारी से मुकाबले की तैयारी में पूरी तरह फेल रहे। 

कोरोनावायरस से सबसे ज्यादा संक्रमित लोगों के मामले में अमेरिका अभी भी सबसे आगे चल रहा है। संक्रमण को काबू करने या इससे पैदा हुए हालात को संभालने में अमेरिका लगातार गलतियां कर रहा है। संक्रमण लगातार बढ़ रहे हैं लेकिन अमेरिकी व्यवस्था अभी भी लड़खड़ाती ही नजर आ रही है। देश का कोई भी राज्य इस बीमारी के चुंगल से बाहर नजर नहीं आ रहा है। 

लेकिन इधर चीन में वुहान में फैले संक्रमण को कुचलने के बाद वहां की सरकार को सिर्फ छोटे स्तर पर फैले स्थानीय संक्रमणों को ही काबू करने की जरूरत पड़ी। पिछले महीने चीन में घरेलू स्तर पर कोरोनावायरस संक्रमण का एक भी मामला नहीं मिला। 31 मार्च को ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ में मार्टिन वुल्फ ने लिखा, “ चीन ने हुबेई में इस बीमारी को काबू कर लिया और इसे पूरे देश में फैलने से रोक दिया।” पूरे देश में यह बीमारी कभी नहीं फैली। आप यह कह सकते हैं कि यह सिर्फ हुबेई में ही फैली थी। 

 

चीन ने जनता की जान की कीमत समझी 

 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जहां इस बीमारी के बारे में अपने नागरिकों से झूठ बोला वहीं चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता चीन के लोग हैं। लोगों की जिंदगी बचाने के लिए चीन ने फौरी तौर पर अपनी आर्थिक प्राथमिकताओं को भी ज्यादा तवज्जो नहीं दी। 

चीन ने वैज्ञानिक आधार पर अपने कदम उठाए। सरकार इस संक्रमण की चेन तोड़ने में कामयाब रही। सितंबर की शुरुआत तक एक अरब चालीस करोड़ की आबादी वाले इस देश में कोरोना संक्रमण के 85,194 मामले समने आए थे और 4636 लोगों की मौत हुई थी ( इसकी तुलना में एक अरब तीस करोड़ लोगों की आबादी वाले भारत में सितंबर की शुरुआत में संक्रमण के मामले 48 लाख तक पहुंच चुके थे। मौतों की संख्या 80,026 पर पहुंच चुकी थी। अब भारत में हर सप्ताह चीन में संक्रमण से हुई कुल मौतों से भी ज्यादा लोगों की जान जा रही है)।

इस बीच, अमेरिका में मौतों की संख्या 1,98,680 तक पहुंच चुकी है। संक्रमण के मामले बढ़ कर 67 लाख तक हो चुके हैं। चीन की तुलना में अमेरिका में मौतों की संख्या 43 गुना है, जबकि संक्रमण के केस 79 गुना ज्यादा हैं। 

चीन के उलट, अमेरिकी सरकार लॉकडाउन की एक चाक-चौबंद नीति बनाने में हिचकिचाती रही। अमेरिकी जनता का ठीक से टेस्ट करने में भी वह नाकाम दिखी। यही वजह है अमेरिका में Per Capita मौतों की संख्या चीन से 186 गुना ज्यादा है। संक्रमण के केस 343 गुना ज्यादा हैं।

इस बीच, ट्रंप का नस्लवादी रवैया भी दिखा और उन्होंने इस वायरस का ठीकरा चीनियों पर फोड़ दिया। यह पूरी तरह से ध्यान भटकाने की कोशिश थी। उधर, चीन ने संक्रमण को काबू कर लिया। लेकिन अमेरिका इसे काबू करने में पूरी तरह नाकाम रहा। इतनी बड़ी तादाद में हो रही मौतें ‘मेड इन चाइना’ नहीं ‘मेड इन वॉशिंगटन’ है।

इकोनॉमी का हाल 

वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही में चीन की जीडीपी वित्त वर्ष 2019 की पहली तिमाही की तुलना में 6।8 फीसदी गिर गई। लेकिन देश में फैले संक्रमण को तेजी से खत्म करने की वजह से अर्थव्यवस्था में रिकवरी भी तेज हुई। दूसरी तिमाही में जीडीपी में 3।2 फीसदी (2019 की दूसरी तिमाही की तुलना में) की ग्रोथ दर्ज की गई। आईएमएफ का आकलन है कि प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सिर्फ चीन में ही सकारात्मक ग्रोथ दर्ज होगी। 

आखिर चीन की अर्थव्यवस्था इतनी जल्दी पटरी पर कैसे आ गई? जवाब साफ है। चीनी अर्थव्यवस्था का समाजवादी चरित्र इसे रिकवरी की राह पर ले आया। जुलाई तक चीन सरकार (राज्य की ओर से किया गया निवेश। इसे हम सार्वजनिक निवेश भी कह सकते हैं) का निवेश पिछले साल किए गए निवेश की तुलना में 3।8 फीसदी ज्यादा था। जबकि निजी निवेश, 2019 की तुलना में अभी भी 5।7 फीसदी कम था। चीन ने अपने मजबूत सार्वजनिक (सरकारी) सेक्टर का इस्तेमाल मंदी से बाहर निकलने में किया। इसने दिखाया कि कैसे चीन का सरकारी उद्यम अर्थव्यवस्था की उथल-पुथल को ज्यादा कारगर तरीके से काबू करने में कामयाब रहा।

अगस्त के मध्य में चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी की सैद्धांतिकी जर्नल Qiushi  (सच का आग्रही) ने शी जिनपिंग का एक भाषण छापा। इसमें उन्होंने कहा था, “  चीन की राजनीतिक अर्थव्यवस्था की बुनियाद सिर्फ मार्क्सवादी राजनीतिक अर्थशास्त्र ही हो सकती है। यह किसी और दूसरे आर्थिक सिद्धांत पर आधारित नहीं हो सकती।” यह विकास के जनवादी सिद्धांत पर ही आधारित हो सकता है। चीन सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण के खिलाफ जो कदम उठाए उसके मूल में यही सिद्धांत और नजरिया काम कर रहा था।

इधर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह साफ कर दिया था कि उनका प्रशासन नेशनल लॉकडाउन जैसी कोई चीज लागू नहीं करेगा। ऐसा लग रहा था कि उनकी प्राथमिकता अमेरिकी लोगों की जान बचाने के बजाय अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बचाने की थी। मार्च की शुरुआत में भी इस बात के कोई संकेत नहीं दिख रहे थे कि अमेरिका में कोरोना संक्रमण को काबू कर लिया जाएगा। ट्रंप ने उस दौरान ऐलान किया, “ अमेरिका कारोबार के लिए जल्दी ही खुल जाएगा। यह बहुत जल्दी खुलेगा।’’

अमेरिका में तबाही 

अमेरिका में अपनाई गई अक्षम नीतियों की वजह से कोविड-19 संक्रमण बेहद तेजी से फैला। संक्रमण को काबू करने के लिए अपनाए जाने वाले बेसिक प्रोटोकोल- जैसे मास्क, हैंड सैनिटाइजर के इस्तेमाल- को गंभीरता से नहीं लिया गया। नतीजतन अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर तबाही टूट पड़ी।

अमेरिका ने साफ कर दिया कि वह ऐसी कोई नीति नहीं अपनाने जा रहा, जिसके केंद्र में जनता हो। यानी ट्रंप प्रशासन का साफ संकेत था कि वह संक्रमण को काबू करने के लिए कोई जनवादी नीति नहीं अपनाएगा। ट्रंप का पूरा जोर अर्थव्यवस्था को खुला रखने पर था। क्योंकि वह यह सोच रहे थे कि लोगों की जेबें गर्म रख कर ही वह राष्ट्रपति चुनाव जीत पाएंगे। उनकी इस नीति से लोगों की जान पर क्या असर पड़ेगा, उसकी उन्होंने पूरी तरह अनदेखी की। उनकी इस सोच की वजह से पूरे देश के आधे हिस्से में ही लॉकडाउन लगाया गया था। टेस्टिंग और कॉन्टेक्ट ट्रेसिंग भी बहुत कम हुई। 

दूसरी तिमाही में अमेरिकी जीडीपी (2019 की दूसरी तिमाही की तुलना में) 9।5 फीसदी गिर गई। अब इसमें मजबूती आने का कोई संकेत नहीं दिख रहा है। आईएमएफ ने कहा है कि वित्त वर्ष 2020 में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में 6।6 फीसदी की गिरावट दर्ज की जाएगी। आईएएमफ ने ‘Risk Ahead’ शीर्षक से अपनी टिप्पणी में लिखा, क्या अमेरिका की एक बड़ी आबादी को अपने जीवनस्तर में आने वाली बड़ी गिरावट से संतोष कर रह जाना होगा। क्या आने वाले कई सालों तक उस बड़ी आर्थिक दिक्कतों के बीच जिंदगी गुजारनी होगी।” जाहिर है, अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल का उनकी जिंदगी पर लंबा असर रहेगा। आईएमएफ ने आने वाली दिक्कतों का साफ तौर पर जिक्र किया है। उसके मुताबिक अमेरिका में मानव पूंजी में इजाफा बंद हो जाएगा। श्रम शक्ति में भागीदारी घट जाएगी। या फिर इससे सामाजिक तनाव फैलेगा। यह चीन की हालत से बिल्कुल उलट तस्वीर है। 

ऐसा लग रहा है कि जैसे हम दो दुनिया में रह रहे हों। एक दुनिया में ट्रंप के उस ढोंग के खिलाफ गुस्सा है, जो उन्होने बॉब वुडवर्ड के सामने दिखाया था। लोगों में ध्वस्त हुए हेल्थ सिस्टम और इकनॉमी को लेकर गुस्सा है, क्योंकि आने वाले वर्षों के दौरान इन्हें फिर से खड़ा करने की राह बेहद कठिन है। 

दूसरी ओर एक ऐसी दुनिया (चीन) है, जिसमें संक्रमण की चेन तोड़ दी गई है। चीन अब भी सतर्क है और अपने लोगों की जान बचाने के लिए वह देश के फौरी आर्थिक विकास को भी कुर्बान करने के लिए तैयार है।

चीन पर ट्रंप के हमले, उसे अमेरिका से अलग-थलग करने की धमकी और ‘चीनी वायरस’ को लेकर उनकी नस्लवादी टिप्पणी, सब चीन को बदनाम करने की साजिश है। यह चीन के खिलाफ एक इनफॉरेशन वॉर है ताकि उसकी छवि धूमिल की जा सके। 

 

दूसरी ओर शी जिनपिंग ने अपना पूरा ध्यान  “dual circulation” पर लगा रखा है। यानी घरेलू मोर्चे पर वह चीन की जनता का जीवनस्तर ऊपर ले जाने और गरीबी खत्म करने के कदम उठा रहे हैं तो दूसरी ओर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर जोर लगा रहे हैं। ये दोतरफा रणनीति अमेरिका पर चीन की निर्भरता कम कर देगी। 

तो इस तरह ये दुनिया अलग-अलग दिशाओं में जाती दिख रही है। एक भविष्य की ओर से बढ़ती दिख रही है तो दूसरी काबू से बाहर होती लग रही है।

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विजय प्रसाद भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। प्रसाद Globtrotter के राइटिंग फेलो और मुख्य संवाददाता हैं। Globetrotter इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट का प्रोजेक्ट है। वह लेफ्टवर्ड बुक्स के मुख्य संपादक और ट्राईकांटिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं। इस लेख को स्वतंत्र मीडिया संस्थान की एक परियोजना, Globetrotter से लिया गया है। वह चीन की रेनमिन यूनिवर्सिटी की चॉन्गयोंग इंस्टीट्यूट फॉर फाइनेंशियल स्टडीज के सीनियर नॉन-रेजिडेंट फेलो हैं।  Darker Nations और The Poorer Nations समेत 20 किताबें लिख चुके हैं। उनकी हालिया किताब है Washington Bullets, जिसका परिचय Evo Morales Ayma ने लिखा है।

यह लेख Globetrotter ने छापा है, जो इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट का प्रोजेक्ट है।

जॉन रॉस चीन की रेनमिन यूनिवर्सिटी के चॉन्गयोंग इंस्टीट्यूट फॉर फाइनेंशियल स्टडीज में सीनियर फेलो हैं। वह लंदन के मेयर की आर्थिक नीतियों के निदेशक रह चुके हैं।

यह लेख मूल रूप से  पीपल्स डिस्पैच में छपा है।

इस लेख इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

The difference between the US and China’s response to COVID-19 is staggering

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