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भारत
राजनीति
पेगासस प्रकरण के बाद निजता का क्या होगा? 
किसी भी मोबाइल या लैपटॉप की ऑनलाइन गतिविधि को गुप्त रूप से ट्रैक करना और बड़े डेटा को हासिल करना बताता है कि कंपनियां ज़्यादातर उन व्यक्तियों के बारे में जानकारी हासिल करती हैं जो जानकारी उनके पास कभी नहीं होती है।
वैभव निकम
03 Aug 2021
Translated by महेश कुमार
पेगासस प्रकरण के बाद निजता का क्या होगा? 

एक स्वतंत्र न्यायपालिका, प्रेस की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार, और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से जवाबदेह होना: ये कुछ भारतीय संवैधानिक प्रणाली के वे वादे हैं जिन्हे कार्यकारी शक्ति नियंत्रित करती हैं। बावजूद इसके, पेगासस प्रोजेक्ट ने जो खुलासा किया है, उसके मुताबिक खुफिया तरीके से कई भारतीय पत्रकारों, एक्टिविस्ट्स और विपक्षके नेताओं को स्पाइवेयर के माध्यम से निशाना बनाया गया है और उनके जीवन और कार्यों के अंतरंग विवरण को एकत्र किया गया है। इस तरह की जासूसी उन्हें स्वतंत्र रूप से अपनी भूमिका निभाने के बारे में धमकाती है, और संविधान द्वारा दी गई सुरक्षा को पंगु बनाती है। कोई भी न्यायाधीश कैसे निष्पक्ष होगा यदि वह जानता है कि उसकी हर ऑनलाइन गतिविधि पर नज़र रखी जा रही है? पत्रकार या जर्नलिस्ट अपने स्रोतों की रक्षा कैसे करेंगे यदि उनके इलेक्ट्रोनिक उपकरणों की जानकारी अज्ञात व्यक्तियों और दर्शकों को गुप्त रूप से लीक हो जाती है? यदि संविधान के मुताबिक इस तरह की गतिविधियों को जांच के डायरे में नहीं रखा जाता है तो इस प्रावधान के बेअसर होने से सत्तावादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलता है, इसलिए सत्ताधारी दल के मंत्रियों की जासूसी भी इन प्रवृत्तियों के सच को प्रदर्शित करती है।

एक दशक पहले, भारत सरकार ने गोपनीयता की सुरक्षा की किसी भी संरचना के बिना आधार कार्ड पेश किया था। जब अदालत में इसे चुनौती दी गई तो उन याचिकाओं के जवाब में आधार को स्वैच्छिक बता दिया गया था। बावजूद इसके, आज व्यवहार में, आधार सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के मामले में सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज बन गया है। आधार को भी बिना डेटा सुरक्षा कानून के लागू किया गया था। चूंकि व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (पीडीपी) विधेयक संसद में लंबित है, वर्तमान में, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत डेटा को विनियमित किया जाता है।

प्रस्तावित पीडीपी विधेयक की धारा 28, व्यक्तियों को सरकारी आईडी का इस्तेमाल करके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर 'स्वेच्छा से' खुद की पहचान करने की अनुमति देती है। यह बेकार का   प्रावधान है, जिसे अन्य देशों के निजता कानून में नहीं पाया जाता है। यह जरूरी पहचान की संभावना को पैदा करता है, जैसा कि आधार के साथ हुआ है। सरकार ने जासूसी करने की शक्ति भी बरकरार रखी है, जो पहचान की जरूरत से जुड़ी हुई है, जो गोपनीयता या निजता से जुड़ी कई अधिक चिंताओं को उठाती है।

श्रीकृष्ण समिति की सिफारिशों पर आधारित पीडीपी विधेयक को दिसंबर 2019 में कैबिनेट की मंजूरी मिल गई थी। हालांकि, विधेयक का मसौदा तैयार करने वाली समिति का नेतृत्व करने वाले न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्ण ने कहा है कि प्रस्तावित कानून के सरकारी संस्करण में "खतरनाक" प्रावधान हैं जो देश को एक "ऑरवेलियन" राष्ट्र में तब्दील कर देगा जिसमें हर व्यक्ति के जीवन की सूक्ष्म जानकारी जासूसी के माध्यम से इकट्ठी की जाएगी। श्रीकृष्ण समिति की सिफारिश की तुलना में मसौदे में परेशान करने वाले जो प्रस्ताव हैं वे केंद्रीय एजेंसियों की भूमिका में बदलाव से संबंधित हैं।

सरकार चाहती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और विदेशी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों की चिंताओं से जुड़े मुद्दों पर व्यक्तिगत डेटा को संसाधित करने के लिए कुछ एजेंसियों को नियमों में छूट दी जाए। जबकि ये चिंताएं कागज पर तो ठीक हैं, लेकिन सरकार द्वारा पेश किए गए बिल में छूट देने की निगरानी की प्रक्रियाओं, सुरक्षा उपायों और तंत्र का अभाव है। “प्रवर समिति को इसे बदलने का अधिकार है। न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने इकोनॉमिक टाइम्स अखबार को बताया कि अगर वे मुझे बुलाएंगे तो मैं उन्हें बता दूंगा कि यह सब बकवास है और मेरा मानना ​​है कि सरकारी पहुंच पर न्यायिक निगरानी होनी चाहिए,”। फिलहाल, पीडीपी विधेयक एक संयुक्त संसदीय समिति के पास है जिसे विपक्ष के विरोध के बाद उसे भेजा गया था।

चुनाव में गुप्त वोट बनाम बाहुबल और धनबल

गुप्त मतदान एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक मानदंड है, लेकिन अब हमें पेगासस खुलासे और पिछले कैम्ब्रिज एनालिटिका प्रकरण के संदर्भ में इस अधिकार की जांच करनी होगी। पेगासास किसी को भी जासूसी के जरिए लक्षित कर सकता है, जबकि कैम्ब्रिज एनालिटिका बड़े डेटा का का उपयोग करके मतदाता व्यवहार में हेरफेर कर सकता है। लोकतांत्रिक शासन को इसलिए स्वीकार किया गया है क्योंकि वह व्यक्तियों को स्वतंत्रता के प्राकृतिक अधिकार की गारंटी देता है। जिसमें चुनाव के माध्यम से नागरिक अपने प्रतिनिधि चुनने के लिए स्वतंत्र होते हैं। लोकतंत्र में, सत्ता में निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास होती है और उन पर संविधान का नियंत्रण और संतुलन उनकी जवाबदेही सुनिश्चित करता हैं। इसलिए, समय-समय पर, नेताओं को लोकप्रिय सहमति लेने की जरूरत होती है।

एक स्वस्थ लोकतंत्र, नागरिकों को बाहुबल और धनबल वाले लोगों द्वारा डराने-धमकाने से रक्षा करने के लिए गुप्त मतदान का अधिकार देता है। वे अपने हितों को ध्यान में रखते हुए अपने मन से मतदान कर सकते हैं। यदि गुप्त मतदान पूर्व-डिजिटल युग में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की गारंटी देता है, तो सूचना युग में हमारे पास क्या है? अब, प्रौद्योगिकी को लोगों की पसंद को प्रभावित करने के लिए डेटा का विश्लेषण करने की अनुमति देती है।

पेगासास का मामला 

पेगासस बनाने वाली इजरायली कंपनी एनएसओ का कहना है कि वह अपने स्पाइवेयर को गैर-सरकारी संस्थाओं को नहीं बेचती है। इसलिए, सरकारें इसे संगठित अपराध और आतंकवादी नेटवर्क को पकड़ने के लिए खरीद सकती हैं। भारत में निजता का अधिकार पूर्ण नहीं है। टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, सरकार को निगरानी करने की अनुमति देते हैं। टेलीग्राफ अधिनियम के तहत, सरकार केवल कुछ स्थितियों में फोन कॉल को इंटरसेप्ट कर सकती है: जब खासकर, राज्य की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा का मसला हो; विदेशी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों के मामले में; सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने और किसी अपराध को उकसाने से रोकने के लिए ऐसा किया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी यही प्रतिबंध लागू होते हैं। प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा उपाय हैं। केवल केंद्र या राज्यों के गृह विभागों के उच्च पदस्थ सचिव स्तर के अधिकारी ही (फोन की) टैपिंग को अधिकृत कर सकते हैं, और अपरिहार्य परिस्थितियों में ऐसे अफसर संयुक्त सचिव के पद से नीचे के नहीं होने चाहिए।  

आईटी अधिनियम की धारा 69 के तहत अधिनियमित सूचना प्रौद्योगिकी (सूचना के अवरोधन, निगरानी और डिक्रिप्शन के लिए सुरक्षा उपायों की प्रक्रिया) नियम, 2009, इलेक्ट्रॉनिक निगरानी के लिए एक अतिरिक्त कानूनी ढांचा प्रदान करते हैं। यह खंड "अपराध की जांच के लिए" डिजिटल जानकारी के अवरोधन, निगरानी और डिक्रिप्शन द्वारा व्यापक जासूसी की अनुमति देता है। आईटी एक्ट के तहत डेटा के सभी इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन को इंटरसेप्ट किया जा सकता है। इस प्रकार यह सरकार को व्यापक निगरानी की अनुमति देता है।

इसलिए, निगरानी के किसी भी पेगासस जैसे उदाहरण के मद्देनजर, सरकार जासूसी करने के लिए इन कृत्यों को लागू करेगी। यह हमें पूर्व आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद के उस बयान कि तरफ मुखातिब करती है, जिसमें उन्होने पूछा था कि, अगर 45 से अधिक देशों ने पेगासस का इस्तेमाल किया है, तो क्या "सिर्फ भारत को लक्षित" करना ठीक बात है? उन्होंने कहा कि भारतीय अधिकारियों ने पेगासस की कोई खरीद नहीं की है। वर्तमान सूचना प्रौद्योगिकी और संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा को बताया कि भारत में अवैध निगरानी असंभव है, हालांकि उन्होंने भारत में पेगासस की तैनाती से इनकार नहीं किया।

यहां तक ​​कि छोटा सा संदेह भी जिसमें बिग ब्रदर स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर नज़र गड़ाए हुए है खतरे की घंटी है क्योंकि यह सरकारी तंत्र के उत्पीड़न के खतरे की तरफ इशारा करता है। यदि लोग मुद्दों पर बहस नहीं कर सकते या अपनी मांगों को व्यक्त नहीं कर सकते हैं, और अगर सरकार को उसकी नीतियों के बारे में ईमानदार प्रतिक्रिया नहीं मिलती है, तो कल्याणकारी राज्य विफल हो जाएगा, और लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा। 

कैम्ब्रिज एनालिटिका का मामला 

कैम्ब्रिज एनालिटिका ने अपने वैश्विक ग्राहकों के लिए चुनावी रणनीति तैयार करने के लिए विभिन्न देशों में लाखों फेसबुक उपयोगकर्ताओं के डेटा का इस्तेमाल किया था। इसने 2016 के संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित किया और डोनाल्ड ट्रम्प की जीत में योगदान दिया था। इसने भारत में विभिन्न राजनीतिक नेताओं और पार्टियों के लिए भी काम किया है। कैम्ब्रिज एनालिटिका ने उनके वैचारिक जुड़ाव का अध्ययन कर व्यक्तिगत डेटा का इस्तेमाल किया, किनारे बैठे लोगों की पहचान की, उन्हें सर्वेक्षणों और समाचारों के माध्यम से  लक्षित किया। इन अनिर्णीत मतदाताओं, जिनकी निर्वाचन क्षेत्रों में पर्याप्त उपस्थिति हो सकती है, को ऑनलाइन सामग्री प्रदान की गई जो डेमोक्रेट्स के खिलाफ थी और रिपब्लिकनस का समर्थन करती थी। इस प्रकार इसने रिपब्लिकन के पक्ष में और डेमोक्रेटिक उम्मीदवारों के खिलाफ अमेरिकी चुनाव में कई लोगों के मतदान को प्रभावित किया था। इसके अलावा, फेसबुक ने यूजर्स के डेटा को उनकी सहमति के बिना, व्यावसायिक हित में कैम्ब्रिज एनालिटिका को इस्तेमाल करने के लिए दे दिया था। 

हमने इस कड़ी में देखा कि डेटा राजनीतिक अर्थव्यवस्था का एक आधार है, जिसका इस्तेमाल  उपभोक्ता-लक्षित विज्ञापनों के लिए किया जाता है जो राजनीतिक व्यवहार सहित व्यक्तिगत निर्णयों को तैयार करते और प्रभावित करते हैं। अनियमित डेटा संग्रह, उसका इस्तेमाल और प्रसारण लोकतंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है, जैसा कि संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति चुनाव में हुआ था। वोट की पवित्रता या गुप्तता को बनाए रखने के लिए, व्यक्ति को निर्णयों और विकल्पों पर विचार करने के लिए एक निजी स्थान मिलना चाहिए। लक्षित सामग्री का इस्तेमाल करके मतदान व्यवहार में हेराफेरी करने से स्वतंत्र विचार और पसंद में बाधा आती है। यह स्वतंत्रता का हनन है और यही कारण है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया के लिए डेटा संरक्षण कानून महत्वपूर्ण है।

निजता का अधिकार और लोकतांत्रिक कामकाज 

जब किसी व्यक्ति के पास अधिकार नहीं होते हैं, तो उसकी व्यक्तिगत गरिमा का उल्लंघन होता है। जेएस मिल ने "स्व-संबंधित कार्रवाई" और "अन्य-संबंधित कार्रवाई" के बीच अंतर किया है। पहले की स्थिति में, राज्य को तब तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक कि कोई व्यक्ति खुद के लिए हानिकारक न हो। हालांकि, पेगासस जैसी लक्षित जासूसी व्यक्तिगत अधिकारों और गरिमा का उल्लंघन करती है। इस प्रकार यह कार्यवाई अन्य-संबंधित कार्रवाई है - उदाहरण के लिए, राजनीतिक गतिविधि के क्षेत्र लोगों को खुद को व्यक्त करने और संगठित होने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। इसलिए, हर तरह से, प्रजातंत्र में निजता न केवल एक व्यक्ति की भलाई है, बल्कि एक सार्वजनिक भलाई भी है।

लेखक सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में पीएचडी के छात्र हैं और निजता पर विशेषज्ञता हासिल कर रहे हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

What Happens to Privacy After Pegasus?

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