NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
ये सरकार 2019 में लौटी तो पत्रकारिता के ताबूत में आखिरी कील होगी
सब्‍ज़ी बेचो, कपड़ा बेचो, एगरोल का ठीहा लगाओ खाली वक्‍त में, लेकिन पेशेवर मुकदमेबाज़ों को यह न लगने दो कि वे जीत गए। मौका मिले तो वकालत कर लो, एलएलबी में नाम लिखवा लो। काला कोट पहन लो......
अभिषेक श्रीवास्तव
08 Jan 2018
journalist

पंद्रह साल पहले तक यह स्थिति थी कि डेस्‍क पर काम करने वाला पढ़े से पढ़ा आदमी हीनभावना से ग्रस्‍त रहता था। रिपोर्टिंग में जाने को मचलता रहता था। कोई प्रिविलेज जैसा उसे अहसास होता था फील्‍ड रिपोर्टर होने में। धीरे-धीरे हालात यों बने कि फील्‍ड का आदमी डेस्‍क पर लौटने की इच्‍छा ज़ाहिर करने लगा क्‍योंकि मैदान में स्टिंग करने वालों की एक नई खेप आ गई थी अंडरकवर रिपोर्टरों की। उनके सामने सामान्‍य रिपोर्टर हीनभावना से ग्रस्‍त रहने लगा। कोई पांचेक साल पहले तक स्टिंग वाले तबाह किए हुए थे दुनिया को। डेस्‍क का समझदार आदमी हमेशा से जानता था कि स्टिंग-फिस्टिंग पत्रकारिता नहीं है, बज्र सनसनी है। इसका कोई सामाजिक मूल्‍य भी नहीं, हां राजनीतिक मूल्‍य ज़रूर है। फिर स्टिंग में मूल्‍य निकालने वालों की बाढ़ आ गई और स्टिंग के पुरोधा काल कवलित हो गए।

दस-बारह साल के इस डेवलपमेंट के बाद तकरीबन सब में एक अहसास पैदा हुआ कि ठहर कर ग्राउंड रिपोर्टिंग करने का वक्‍त है। थोड़ा वक्‍त लिया जाए, स्‍टोरी को पकाया जाए और प्‍यार से लंबे में परोसा जाए। हिंदी में तो ऐसा दो-चार स्‍वतंत्र लोग अपनी जेब फूंक कर करते रहे, अंग्रेज़ी में संस्‍थाओं के नाम पर केवल The Caravan इस मॉडल को पकड़ सका। इस बीच स्टिंग वाले रह-रह कर सिर उठाते रहे और बिलाते रहे। डेस्‍क वालों की हीनभावना कम होती गई क्‍योंकि सोशल मीडिया के आने से पत्रकारिता में कैची हेडिंग लगाना सबसे अहम काम बन गया। ''किसने किसको देखा कि किसके होश उड़ गए'' या ''फलाने के पतन के पांच कारण'' टाइप शीर्षक मुख्‍यधारा पत्रकारिता की अहम जिम्‍मेदारी बन गए।

अब दो साल से नया दौर आया है। नैरेटिव यानी लॉन्‍ग फॉर्म स्‍टोरी हो या स्टिंग का खुलासा, ये सब मुकदमे का शिकार हो रहे हैं। रेगुलर रिपोर्टिंग का हाल बीटवालों से पूछिए जिनसे मंत्रालय का कुत्‍ता भी बतियाने से डरता है। थोड़ा प्रतिभावान रिपोर्टर मुकदमे की गठरी लिए जी रहा है। आपने समाज का भला करने के लिए कुछ उद्घाटन किया तो आप पर मुकदमा होना तय है। अब रिपोर्टिंग में मौसम विभाग के वैज्ञानिक से बात कर के तूफ़ान का रास्‍ता बताने के अलावा कुछ नहीं बचा। न्‍यायपालिका की लड़खड़ाहट के दौर में कौन मुकदमा झेलना चाहेगा भला? ये सरकार 2019 में लौटी तो पत्रकारिता के ताबूत में आखिरी कील होगी।

हे साहसी अंडरकवर रिपोर्टरों, लंबा-लंबा लिखने वाले ग्राउंड के वीरों, सोचो। पत्रकारिता के बारे में नहीं, रिपोर्टिंग को बचा ले जाने के बारे में। एक ऐसी दुकान के बारे में जिसके सहारे रिपोर्टिंग जिंदा रखी जा सके। मुकदमा लड़ा जा सके। पलट कर मुकदमा ठोंका जा सके। सब्‍ज़ी बेचो, कपड़ा बेचो, एगरोल का ठीहा लगाओ खाली वक्‍त में, लेकिन पेशेवर मुकदमेबाज़ों को यह न लगने दो कि वे जीत गए। मौका मिले तो वकालत कर लो, एलएलबी में नाम लिखवा लो। काला कोट पहन लो। बस, अपने भीतर के रिपोर्टर को कमज़ोर न पड़ने दो।

Courtesy: हस्तक्षेप
freedom of expression
Modi Govt
BJP-RSS
Journalists
curbing freedom of expression
curbing dissent

Related Stories

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

सरकारी एजेंसियाँ सिर्फ विपक्ष पर हमलावर क्यों, मोदी जी?

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़

भारत में संसदीय लोकतंत्र का लगातार पतन

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

मोदी सरकार 'पंचतीर्थ' के बहाने अंबेडकर की विचारधारा पर हमला कर रही है

लोगों की बदहाली को दबाने का हथियार मंदिर-मस्जिद मुद्दा

ज्ञानवापी, ताज, क़ुतुब पर बहस? महंगाई-बेरोज़गारी से क्यों भटकाया जा रहा ?

तिरछी नज़र: ...ओह माई गॉड!


बाकी खबरें

  • मुकुल सरल
    ज्ञानवापी प्रकरण: एक भारतीय नागरिक के सवाल
    17 May 2022
    भारतीय नागरिक के तौर पर मेरे कुछ सवाल हैं जो मैं अपने ही देश के अन्य नागरिकों के साथ साझा करना चाहता हूं। इन सवालों को हमें अपने हुक्मरानों से भी पूछना चाहिए।
  • ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
    कोविड-19 महामारी स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में दुनिया का नज़रिया नहीं बदल पाई
    17 May 2022
    कोविड-19 महामारी लोगों को एक साथ ला सकती थी। यह महामारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) जैसे वैश्विक संस्थानों को मज़बूत कर सकती थी और सार्वजनिक कार्रवाई (पब्लिक ऐक्शन) में नया विश्वास जगा सकती थी…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    धनकुबेरों के हाथों में अख़बार और टीवी चैनल, वैकल्पिक मीडिया का गला घोंटती सरकार! 
    17 May 2022
    “सत्ता से सहमत होने के लिए बहुत से लोग हैं यदि पत्रकार भी ऐसा करने लगें तो जनता की समस्याओं और पीड़ा को स्वर कौन देगा?“
  • ukraine
    सी. सरतचंद
    यूक्रेन में संघर्ष के चलते यूरोप में राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव 
    16 May 2022
    यूरोपीय संघ के भीतर रुसी तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाने के हालिया प्रयास का कई सदस्य देशों के द्वारा कड़ा विरोध किया गया, जिसमें हंगरी प्रमुख था। इसी प्रकार, ग्रीस में स्थित शिपिंग कंपनियों ने यूरोपीय…
  • khoj khabar
    न्यूज़क्लिक टीम
    नफ़रती Tool-Kit : ज्ञानवापी विवाद से लेकर कर्नाटक में बजरंगी हथियार ट्रेनिंग तक
    16 May 2022
    खोज ख़बर में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने बताया कि किस तरह से नफ़रती Tool-Kit काम कर रही है। उन्होंने ज्ञानवापी विवाद से लेकर कर्नाटक में बजरंगी शौर्य ट्रेनिंग में हथियारों से लैस उन्माद पर सवाल उठाए…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License