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क्या अरब सागर को पार करते हैं चातक पक्षियों के दल?
वाइल्ड लाइफ़ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों ने जुलाई महीने में दो चातक चिड़िया को पकड़कर उन पर सेटेलाइट टैग लगाए। टैग का भार करीब 2 ग्राम है। इस चिड़िया का वज़न करीब 60 ग्राम होता है। डबल्यूआईआई के वैज्ञानिक डॉ सुरेश कुमार इन चिड़ियों की उड़ान की मॉनीटरिंग कर रहे हैं।
वर्षा सिंह
09 Nov 2020
Pied cuckoo map

मानसून विदा हुए एक महीने से अधिक का समय बीत चुका है और मानसूनी हवाओं के साथ चातक पक्षी  (Pied cuckoo) भी हिमालयी तलहटियों से लौट चुके हैं। वे इस समय मीलों लंबी यात्रा में हैं। उनका गंतव्य ठीक-ठीक कहां हैं? वे किन रास्ते से होकर गुज़रते हैं? अभी तक अनुमानों के ज़रिये ही इस पर बात होती थी। लेकिन अब वैज्ञानिक इसके बारे में कुछ हद तक सटीक जानकारी दे सकेंगे।

देहरादून से महाराष्ट्र के समुद्री तट तक सफ़र पूरा

देहरादून और उसके आसपास के इलाकों से लौटकर चातक पक्षियों का दल इस समय दक्षिणी महाराष्ट्र-गोवा की सीमा पर डेरा जमाए हुए हैं। मई का महीना बीतने के साथ-साथ मानसूनी हवाएं उत्तर भारत की ओर बढ़ती हैं। इसी समय चातक पंछियों का दल भी हिमालयी तलहटियों के लिए उड़ान भर रहा होता है। ये चिड़िया अपने पंखों पर मानसूनी हवाओं का पता लेकर उड़ती है। मौसम के मिज़ाज, हवाओं की चाल को वैज्ञानिक मशीनों से नापकर अनुमान जताते हैं। चातक को पता होता है कि हवाएं किधर रुख कर रही हैं, किस तरफ मौसम में उनके माकूल गर्माहट है, वे उसी दिशा में उड़ान भरते हैं। ये मौसम विज्ञानी चिड़िया हैं। चातक पक्षी को अपने आसपास देख किसान ख़ुश होते हैं कि बारिशें आने वाली हैं।

‘मेघ’ और ‘चातक’ का सेटेलाइट डाटा

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ये पक्षी दक्षिणी अफ्रीका से हिमालयी तलहटियों की ओर आते हैं। इसकी जानकारी जुटाने के लिए वाइल्ड लाइफ़ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों ने जुलाई महीने में दो चातक चिड़िया को पकड़कर उन पर सेटेलाइट टैग लगाए। टैग का भार करीब 2 ग्राम है। इस चिड़िया का वज़न करीब 60 ग्राम होता है। डबल्यूआईआई के वैज्ञानिक डॉ. सुरेश कुमार इन चिड़ियों की उड़ान की मॉनीटरिंग कर रहे हैं। जिन दो पक्षियों पर उन्होंने सैटेलाइट टैग लगाए उन्हें मेघ और चातक नाम दिया गया है। मेघ और चातक के घोसले इंस्टीट्यूट के कैंपस में ही थे।

वह बताते हैं “सितंबर के आखिरी हफ्ते में मानसून विदा हो गया था। 12 अक्टूबर को इन पक्षियों की मौजूदगी देहरादून से 50 किलोमीटर पूर्व में हरिद्वार में राजाजी नेशनल पार्क के आसपास दर्ज हुई। 19 अक्टूबर को हरिद्वार से करीब 1500 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के कोलापुर में लोकेशन ट्रेस हुई। अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में मेघ और चातक दक्षिणी महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक की सीमा पर दांडली टाइगर रिजर्व के आसपास मौजूदगी दर्शा रहे थे”।

इससे पहले वर्ष 2013 में वाइल्ड लाइफ़ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के वैज्ञानिकों ने अमूर फालकन चिड़िया (कबूतर के आकार का एक बाज पक्षी) पर भी इस तरह के सेटेलाइट टैगिंग की थी। ताकि इन पंछियों के उड़ान के रूट को ट्रेस किया जा सके और ये पता लगाया जा सके कि ये कहां से आते हैं और कहां को जाते हैं।

अगली उड़ान पर है नज़र

चातक पक्षियों के बारे में डॉ. सुरेश कहते हैं “ऐसा अनुमान है कि इन पक्षियों को अफ्रीका के दक्षिणी हिस्से में जाना है। मेरी समझ के मुताबिक चातक दलों की उड़ान के कुछ वैकल्पिक मार्ग हो सकते हैं। पहला, यहां से ये पक्षी गुजरात पहुंचेंगे, वहां से समुद्र पार कर अरब प्रायद्वीप के देशों सऊदी अरब, ओमान, यमन की यात्राएं करते हुए सोमालिया की तरफ आगे पहुंचे। एक और विकल्प है कि ये दक्षिण भारत में और नीचे लक्षद्वीप, मालदीव, मॉरिशस, सेशल्स  होते हुए अफ्रीका के दक्षिणी हिस्से की ओर तंजानिया के निचले इलाके के लिए उड़ान भरें।

ऐसा भी संभव है कि चातक चिड़िया दक्षिण भारत के ही स्थायी निवासी हों और अगले कुछ समय के लिए यहीं डेरा डाले रहें”।

गुनगुनी हिमालयी धूप, भोजन और नया जीवन

हिमालयी तलहटियों के जंगलों में मई की चरम धूप के बाद बारिशों के साथ जून का मौसम चातक चिड़ियों के लिए माकूल होता है। इस दौरान वे अंडे देती हैं। लेकिन अपने अंडे की देखभाल खुद नहीं करतीं। बल्कि बैबलर चिड़िया के घोसले में चुपके से अंडे डाल देती हैं। इसी समय बैबलर भी अंडे देती है। डॉ. सुरेश के मुताबिक “बैबलर चिड़िया अंडे से निकले सभी चूजों की एक समान देखभाल करती है। भोजन का प्रबंध करती है। चातक चिड़िया के बच्चों को भी बैबलर अपने बच्चों की तरह पालती है। मानसून बीतने के बाद अक्टूबर की हलकी ठंडक इन्हें रास नहीं आती। ठंड का मतलब कीड़े-मकोड़े जैसे इनके प्रिय भोजन का कम होना भी होता है। इस दौरान अंडे से निकले चूजे भी लंबी उड़ान भरने योग्य पक्षी बन चुके होते हैं। अपने असली मां-बाप के साथ वे भी उड़ान भरते हैं। आखिर कोई यूं ही तो इतनी लंबी यात्राएं नहीं करेगा। धूप और भोजन इसकी दो बड़ी वजहें हैं”।

इक्वेटर यानी भूमध्य रेखा के करीब होने की वजह से दक्षिण भारत के हिस्से इस समय हिमालयी तलहटियों की अपेक्षाकृत अधिक गर्म हैं। इसलिए ये चिड़ियां भी अपना डेरा यहां डालती हैं।

समुद्री हवाओं के संग उड़ान

हमारी मौसम विज्ञानी चातक चिड़िया को पता है कि भूमध्य रेखा से थोड़ा नीचे अफ्रीका के दक्षिणी हिस्से में इस समय वसंत ऋतु शुरू हो रही है। वहां गुनगुनी धूप मिलेगी। कीड़े-मकोड़े समेत अन्य प्रिय भोजन मिलेंगे।

अब उन्हें लंबी उड़ान तय करनी है। इसलिए वे दक्षिण भारत के समुद्री तटों पर हवा की सही चाल का इंतज़ार कर रहे हैं। डॉ. सुरेश कहते हैं “ कुछ दिनों में महाराष्ट्र के समुद्री क्षेत्र में हवा अफ्रीका की तरफ चलनी शुरू हो जाएगी।  समुद्र पार करने वाली चिड़ियों के लिए ये हवा जरूरी है। पीछे से आती हवा यानी टेल विंड जो उन्हें आगे बढ़ने में मदद करेगी। मुंबई से सोमालिया की सीधी दूरी करीब 3 हजार किलोमटर है। करीब 150 ग्राम वज़न वाली अमूर फालकन चिड़िया को इसमें तीन-साढ़े तीन दिन लग जाते हैं। यानी एक दिन में करीब एक हज़ार किलोमीटर। चातक के वज़न की तुलना में संभव है कि एक-दो दिन अधिक या कम समय लगे”।

इस अध्ययन से हमें रेन बर्ड या मानसून बर्ड कही जाने वाली चातक पक्षियों की उड़ान की जानकारी मिलेगी। डॉ. सुरेश कहते हैं “ये चिड़िया कुदरत का बनाया हुआ इंडिकेटर है। जो मानसून के बारे में जानकारी उपलब्ध कराता है। जिस पर हमारी अर्थव्यवस्था निर्भर करती है”।

साइबेरियाई जल-पक्षियों की दस्तक शुरू

इधर, चातक चिड़ियों ने हिमालयी तलहटियों को अगले बरस के लिए विदा कह दिया। उधर, साइबेरियाई पंछी हिमालयी तलहटियों में आमद दर्ज कराने लगे हैं। डबल्यूआईआई के वैज्ञानिक के मुताबिक “ ये शिफ्ट सिस्टम है। गर्मियों में आए चातक पक्षी दल यहां से निकल रहे हैं। उधर, ऊपरी इलाके पर बसे आर्टकिट सर्कल के रूस, साइबेरिया, मंगोलिया इलाके के पक्षी अब इधर हिमालयी तलहटियों में आ रहे हैं। वहां तेज़ बर्फ़ पड़नी शुरू हो गई है। देहरादून से करीब 42 किलोमीटर दूर आसन वेट लैंड में बतख और अन्य जलपक्षी आर्कटिक सर्कल से आ रहे हैं। जून, जुलाई, अगस्त के महीने में आर्कटिक सर्कल पर पूरे समय दिन, रोशनी और गर्मी रहती है। अब वहां भयंकर ठंड शुरू हो चुकी है। एकदम अंधेरा शुरू हो जाएगा। रोशनी नहीं आएगी। इसलिए वहां के पक्षी निचले इलाकों की ओर उड़ान भर रहे हैं। पक्षी अक्षांश (latitude) के आधार पर पलायन करते हैं। जल पक्षी पानी की जगहों, तलाबों-झीलों में रुक-रुक कर अपना सफ़र पूरा करते हैं।

पक्षी भी अलग-अलग मिज़ाज के होते हैं। कुछ समुद्र पार करने की क्षमता रखते हैं। कुछ पानी के डेरों पर उतरते हैं। कुछ पंछी ज़मीन के ईर्द-गिर्द ही रहते हैं। वे समुद्र नहीं पार करते। इन पक्षियों के बारे में हम जितना अधिक जानेंगे, हमें अपनी जलवायु के बारे में भी जानकारी होगी। वैज्ञानिक कहते हैं कि अभी सिर्फ मेघ और चातक के सेटेलाइट टैग से हमें इनकी उड़ान का डाटा मिल रहा है। हमें और अधिक पक्षियों को टैग करना होगा ताकि ज्यादा बेहतर डाटा मिले। साथ ही अगले कुछ वर्षों तक हमें ऐसा डाटा चाहिए ताकि हम इनके उड़ान और हवाई मार्गों की पूरी जानकारी जुटा सकें।

अब ये देखना है कि चातक पक्षी अरब सागर को पार करते हैं या नहीं? आने वाले कुछ हफ्तों में इसका जवाब मिलेगा। चातक पक्षियों पर ये अध्ययन इंडियन विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के बायो टेक्नॉलजी विभाग की ओर से बायो-रिसोर्स इनफॉर्मेशन नेटवर्क (IBIN) प्रोजेक्ट का एक हिस्सा है।

(देहरादून में मौजूद वर्षा सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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