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भारत
राजनीति
मिस्टर मोदी! आपको मालूम होना चाहिए कि आज़ादी के बाद भारत ने रक्षा क्षेत्र में नायाब क़दम उठाए हैं
रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में आज़ाद भारत की उपलब्धियों को दरकिनार करके मोदी दशकों से वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और श्रमिकों द्वारा किए गए अथक प्रयासों का अपमान कर रहे हैं।
डी रघुनंदन
11 Jul 2020
Translated by महेश कुमार
आज़ादी के बाद भारत ने रक्षा क्षेत्र
Image Courtesy: tejas.gov.in

28 जून, 2020 को अपनी नई "मन की बात' के नाम पर दिए गए भाषण में प्रधानमंत्री ने आज़ादी से पहले रक्षा विनिर्माण और आत्मनिर्भरता पर कुछ असाधारण विचार व्यक्त किए हैं, इस संबोधन का दायरा तब से और 2014 में उनके पद संभालने के बाद तक का है।

उनके मन की बात के संबोधन के अंग्रेजी में जारी आधिकारिक प्रतिलेख के अनुसार, उनके अपने शब्द कुछ इस प्रकार थे: “आज़ादी से पहले, रक्षा क्षेत्र के दायरे में, हमारा देश दुनिया के कई देशों से आगे था। यहां आयुध कारखानों की भीड़ हुआ करती थी। कई देश जो हमसे पीछे थे, वे अब हमसे आगे हैं। आजादी के बाद, हमें अपने पुराने अनुभवों का लाभ उठाते हुए रक्षा क्षेत्र को बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए थे ... लेकिन हमने ऐसा नहीं किया। लेकिन आज, रक्षा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में, भारत उन मोर्चों पर आगे बढ़ने के लिए अथक प्रयास कर रहा है ... और इसके साथ भारत अब आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहा है।''

भाषण सुनने पर, या भाषण का प्रतिलेख पढ़ने पर, कोई भी सोच सकता है कि पीएम की यादाश्त कमजोर है या फिर उनके  कहने का कोई और मतलब रहा होगा। लेकिन उनके अन्य हालिया भाषणों की जांच करने से पता चलता है कि वे कुछ समय से इस कथा को हांक रहे हैं, और उनकी टिप्पणी या तो गलत बयानी हैं या फिर बिना सोचे समझे की गई टिप्पणियां हैं।

उदाहरण के लिए, 5 फरवरी, 2020 को लखनऊ में डेफ-एक्सपो (रक्षा उत्पाद एक्स्पो) का उद्घाटन करते हुए पीएम ने कहा था: “आज़ादी के बाद, हमने रक्षा अवसरों और क्षमताओं का पूरी क्षमता से उपयोग नहीं किया है। हमारी नीतियां और रणनीतियां आयात पर आधारित रही हैं। इसलिए भारत इस दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक या खरीदार बन गया। आगे कहा कि ”2014 के बाद, सरकार ने कई नीतिगत सुधार किए, और भारत को सैन्य प्लेटफार्मों के लिए एक विनिर्माण केंद्र में बदलने की बात कही।

हालाँकि, रक्षा प्रौद्योगिकी विकास और विनिर्माण की वास्तविकता, और विशेष रूप से, आज़ादी के बाद, और भारतीय जनता पार्टी-राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के सत्ता संभालने के बाद से इन क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता के रुझान दोनों बहुत अलग बात हैं।

आज़ादी से पहले

हक़ीक़त में आजादी से पहले की कहानी काफी सीधी है। आज़ादी से पहले भारत में रक्षा संबंधित निर्मित सभी सुविधाएं, औपनिवेशिक शक्तियों के तहत थी ताकि वे अपनी सत्ता को सेना के बल पर बनाए रखे, क्योंकि उनका मक़सद भारतीयों की तकनीकी क्षमताओं का निर्माण करने या उन्हे बढ़ाने का तो कतई नहीं था, क्योंकि भारतीय इन इकाइयों को नहीं चलाते थे।

"ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों या आयुध कारखानों की भीड़" को पीएम ने औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा स्थापित बताया, जो ब्रिटेन/यूरोप से एक लंबी आपूर्ति श्रृंखला को बढ़ावा देते थे, इन कारखानों का इस्तेमाल स्थानीय रूप से उनके कब्जे वाली सेनाओं को लड़ाई का सामान और छोटे हथियारों की आपूर्ति के लिए किया जाता था।

1712 में इचापुर में डच ओस्टेंड कंपनी ने बारूद का निर्माण करने वाले पहले आयुध कारखाने को स्थापित किया था। 1775 में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोलकाता के फोर्ट विलियम में आयुध बोर्ड का गठन किया। 1787 में इचापुर में एक और गनपाउडर फैक्टरी लगाई गई, जहां बाद में 1904 में एक अन्य गन फैक्ट्री स्थापित की गई थी, और 1801 में कोसीपोर में एक गन कैरिज एजेंसी बनाई गई, जो आज भी गन एंड शेल फैक्ट्री के रूप में काम कर रही है।

ब्रिटिशों ने 18 ऐसे आयुध कारखाने स्थापित किए जिनका उपयोग भारत में औपनिवेशिक शासन की जड़ों को मज़बूत करने के लिए किया गया था और साथ ही विश्व युद्ध 2 के दौरान एशिया में उनके युद्ध के प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए था। 1947 के बाद भारत में स्थापित कारखानों को नए सिरे से तैयार किया गया और 21 अतिरिक्त आयुध कारखानों का निर्माण किया गया।

हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड की स्थापना 1940 में बैंगलोर में वालचंद हीराचंद द्वारा की गई थी, जो भारत में नागरिक उड्डयन की संभावनाओं को देखते थे। ब्रिटिश भारत सरकार ने 1941 में इसके 25 प्रतिशत शेयर खरीदे और रॉयल एयर फोर्स के एक वरिष्ठ अधिकारी को निदेशक के रूप में नियुक्त किया।ब्रिटिश ने 1942 में कंपनी का राष्ट्रीयकरण किया और 1943 में इसे अमेरिकी वायु सेना को सौंप दिया, जिसने इसे अमेरिका के लिए प्रमुख एशियाई ओवरहाल और सर्विसिंग केंद्र और इस क्षेत्र के सक्रिय सैन्य विमानों को इसके साथ जोड़ दिया था।

दो अन्य प्रमुख रक्षा इकाइयों को भी ब्रिटिश हुकूमत के औपनिवेशिक व्यापार और सैन्य हितों के समर्थन के लिए स्थापित किया गया – इनके नाम गार्डन रीच और मज़गान डॉक्स हैं। बाद में 1774 से ये कंपनियाँ ईस्ट इंडिया कंपनी के जहाजों की सेवा में और बाद में पी एंड ओ और ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेविगेशन जैसी कंपनियों के रूप में विकसित हुईं। 1960 में इसका राष्ट्रीयकरण हुआ और यह एक प्रमुख युद्धपोत विकास कंपनी बन गई।इसलिए, कुछ रक्षा उद्योग वास्तव में ब्रिटिश हुकूमत द्वारा भारत में लगाए गए थे, लेकिन उनका इस्तेमाल केवल भारतीय लोगों के खिलाफ तथा औपनिवेशिक सेना और पुलिस की मजबूती के लिए किया गया था। बस कुछ ही कंपनी, जैसे हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट, अपेक्षाकृत रूप से आधुनिक थे, लेकिन ज्यादातर सर्विसिंग और ओवरहाल सेवाओं तक ही सीमित थे। कल्पना की किसी भी हद तक, यहां तक कि पीएम की उपजाऊ कल्पना के बावजूद, इन्हें समय की उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों के रूप में या भारतीय क्षमताओं को बढ़ावा देने के रूप में नहीं देखा जा सकता है।

आज़ादी के बाद

पीएम का यह कहना कि 1947 के बाद रक्षा उद्योगों में कोई उन्नति नहीं हुई, "पूर्व अनुभव [सीमित] का लाभ उठाते हुए," वे शायद समानांतर ब्रह्मांड का निर्माण करना चाहते हैं। कुछ सरसरी उदाहरण ही इसका खुलासा कर देंगे।आज़ाद भारत ने अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा सहित विज्ञान, प्रौद्योगिकी और उद्योग के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का मार्ग अपनाया था। 1950 के दशक के अंत तक भारत ने परमाणु ऊर्जा बनाने का काम शुरू कर दिया था और 1970 के दशक तक स्वदेशी परमाणु बिजली संयंत्र बना लिया था।

इसके साथ ही, भारत ने 1971 में परमाणु हथियारों और मिसाइल सामग्री के उत्पादन पर भी काम शुरू कर दिया था, जिसने बाद में जाकर पोखरण में तथाकथित शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट को सक्षम बनाया था। इस "तहखाने में बने बम" को बाद में हथियारबंद कर दिया गया और दो दशक बाद खुले में तब लाया गया जब भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी पीएम थे।

अंतरिक्ष कार्यक्रम, जिसने विकास अनुप्रयोगों के लिए पीएसएलवी रॉकेट और लोअर ऑर्बिट पोलर सैटलाइट  को सफलतापूर्वक विकसित किया, ने रक्षा प्रौद्योगिकियों को तीव्र कर दिया। 1983 में, आयुध कारखानों की सहायता से रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के तत्वावधान में एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) में विभिन्न भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों को एक साथ लाया गया था। पृथ्वी मिसाइल जो सतह से सतह मार, त्रिशूल और आकाश जो सतह से हवा में मार, और नाग मिसाइल टैंक भेदी मिसाइल थी, के विकास के चरण के सफल समापन के बाद एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP)  को 2008 में बंद कर दिया गया था।

लंबी दूरी तक मार करने वाली अग्नि मिसाइल को 1989 में अलग से विकसित और परीक्षित किया गया था। ये सभी अब अलग-अलग डिग्री के इस्तेमाल के लिए सेवा में शामिल हैं। इन तकनीकों को अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा अमेरिका के मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम के तहत बेहद कड़े प्रतिबंधों के कारण विकसित किया गया था! बाद में, ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को संयुक्त रूप से रूस के साथ विकसित किया गया और भारत में निर्मित किया गया।

हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को 1964 में स्थापित किया गया था और वह आज तक भारत का सबसे बड़ा सार्वजनिक उपक्रम है।  जिसने अपना पहला फाइटर, एचएफ-24 मारुत, 1956 में फेमस जर्मन डिजाइनर कर्ट टैंक के नेतृत्व में तैयार किया था और जिसे पीएम नेहरू व्यक्तिगत रूप से लाए थे।

एचएफ-24 में उन्नत वायुगतिकी थी लेकिन एक अंडर-संचालित इंजन की वजह से वह ठीक से काम नहीं कर पाया और कोई भी देश विकल्प के मामले में सामने नहीं आया। हालांकि एचएएल ने अपने स्वयं के मूल ट्रेनर एचटी-2 और प्रथम स्तर के जेट ट्रेनर एचजेटी-16 का डिजाइन और निर्माण किया, जिस पर प्रशिक्षु पायलटों की दो पीढ़ियों ने 1960 और 70 के दशक में प्रशिक्षण लिया और महारत हासिल की।

एचएएल ने लाइसेंस के तहत फोलैंड जीनेट का निर्माण भी किया, और बाद में 200 के करीब अपग्रेडेड फाइटर्स का नाम अजीत रखा जिन्हे पाकिस्तान के खिलाफ 1965 के युद्ध के दौरान इस्तेमाल किया गया, जो उस समय के सर्वश्रेष्ठ डॉग फाइटर माने जाने वाले अमेरिकी मूल F-86 सबर्स पर अपनी श्रेष्ठता के लिए प्रसिद्ध हुए।

इसके बाद कई भारतीय वायु सेना फ्रंटलाइन फाइटर जेट जैसे मिग-21, 23, 27 और 29, एंग्लो-फ्रेंच जगुआर, मिराज -2000, सुखोई 30 एमकेआई तैयार किए गए साथ ही चीता, चेतक जैसे कई हेलीकॉप्टरों का लाइसेंस-निर्माण किया गया। एचएएल का अपना एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर और आगामी रूस का डिजाइन कामोव हेलीकॉप्टर है। एचएएल (HAL) वर्तमान में डीआरडीओ (DRDO) के स्वदेशी तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट का सीरियल प्रोडक्शन कर रहा है।

आज़ादी के बाद 1960 के बाद से आयुध कारखानों ने कई हथियार बनाए, जैसे कि स्वदेशी इंसास राइफल, रूसी मूल के टी-92 टैंक, भारतीय मुख्य युद्धक टैंक, अर्जुन, बख्तरबंद वाहन और सेना के वाहक, और इसी तरह कई अन्य सामाग्री बनाई।मझगांव, विशाखापत्तनम, गोवा और गार्डन रीच के शिपयार्ड ने कई फ्रिगेट, डेस्ट्रॉयर, पनडुब्बियों को लाइसेंस के तहत बनाया है और स्वदेशी रूप से परमाणु-संचालित पनडुब्बी और विमान वाहक का निर्माण किया है।

इन सभी और कई अन्य परियोजनाओं को 1947 के बाद या 2014 से पहले लागू किया गया है, यानि वर्तमान पीएम के पद ग्रहण करने से पहले शुरू किया गया था। क्या आजादी के बाद रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में ये भरसक प्रयास नहीं थे, जो पीएम को लगता है कि भारत ने ऐसा नहीं किया? क्या सभी वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और श्रमिकों की लंबी कतार द्वारा किए गए ये प्रयास उनके लिए कुछ भी नहीं है?

इस अवधि के दौरान कई कमजोरियों और असफलताओं के बारे में, इस लेखक सहित कई टिप्पणीकारों ने बहुत कुछ लिखा है, जैसे कि सीरियल लाइसेंस-विनिर्माण, रिसर्च एंड डेवलपमेंट आउटपुट पर कम फोकस और स्वदेशी सैन्य हार्डवेयर के आयात पर हमारी उच्च निर्भरता।

इन कमियों के बावजूद, क्या भारत आज रक्षा निर्माण के क्षेत्र में कई अन्य देशों से आगे नहीं है? क्या भारत सिर्फ उन दर्जन भर या देशों के बीच नहीं है, जिन्होंने अपनी खुद की मिसाइलों, पनडुब्बियों, विमान वाहक, लड़ाकू विमान और हेलीकॉप्टरों का डिजाइन और निर्माण किया है? क्या इन राष्ट्रीय उपलब्धियों को नकारना वह भी स्व-घोषित “राष्ट्रवादी” पार्टी के पीएम के लिए अनुचित बात नहीं है?

वास्तव में यह एक विडबना है कि 2014 के बाद से लगभग सभी सैन्य अधिग्रहण विदेश से एकमुश्त खरीदे गए हैं, जिसमें मोदी द्वारा कोई भी बड़ी स्वदेशी रूप से विकसित रक्षा हार्डवेयर परियोजना शुरू नहीं की गई है।यह भी बेहद चिंताजनक बात है कि इस तरह के स्वदेशी आर एंड डी जिसमें कठिन परिश्रम की जरूरत है कि बजाय वर्तमान सरकार ने लगातार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश या रक्षा विनिर्माण में पूर्ण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को पूरी तरह से मान लिया है और उन्हे लगता है कि विदेशी कंपनियां भारत में उन्नत प्रौद्योगिकियों को लाएंगी। क्या पीएम मोदी सही मायने में ऐसा मानते हैं कि विदेशी रक्षा कंपनियां भारत को आत्मनिर्भर बनने और रक्षा विनिर्माण के क्षेत्र में वैश्विक केंद्र बनाने में मदद करेंगी?

दुःखद बात है कि जिसे हकीकत की तरह पीएम दुनिया के सामने पेश करना चाहते हैं, वह विश्वास से परे है। शायद यह पिछली सरकारों के तहत किए गए काम को कम आँकने से प्रेरित है, खासकर नेहरू-गांधी परिवार के कार्यकाल को बदनाम करने की कोशिश है। स्वतंत्र भारत में रक्षा विनिर्माण के मामले में पीएम का सच से परे का संस्करण, उसके पीछे की प्रेरणा को कोई भी हज़म नहीं कर पाएगा। जितनी जल्दी वे इस झूठ के खेल को बंद कर देंगे, भारत के लिए उतना ही बेहतर होगा।  

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें-

Post-Independence India Made Major Strides in Defence Manufacturing, Mr Modi

mann ki baat
Defence Manufaturing
Nehru-Gandhi Era
Defence Self-Reliancem
DRDO
HAL

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