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भारत
राजनीति
क्या गुजरात एक अलग देश है?
वीरेन्द्र जैन
02 Jun 2015

जिन महात्मा गाँधी को देश की आज़ादी का सबसे बड़ा सिपाही माना गया है और जिन सरदार वल्लभ भाई पटेल को भारत में राज्यों के विलीनीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण देश का सबसे बड़ा आर्कीटेक्ट माना जाता है वे गुजरात के थे, पर उन्होंने कभी सपने में भी स्वतंत्र गुजरात की कल्पना नहीं की होगी। विडम्बना है कि आज देश का प्रधानमंत्री गुजरात का है और देश में सत्तारूढ गठबन्धन के सबसे बड़े दल का अध्यक्ष भी गुजरात का है, फिर भी उनकी दृष्टि बेहद संकीर्ण है।

जब से भाजपा सरकार सत्ता में आयी है तब से आरएसएस अपना एजेंडा लागू करवाने के प्रति बेहद उतावली दिखाई दे रही थी, किंतु मोदी की लोकप्रियता में बहुत तेजी से आयी गिरावट के बाद तो वह साम्प्रदायिक दरार को बड़ी करने के लिए छटपटाने लगी है तथा पार्टी अध्यक्ष समेत सभी मंत्रियों की क्लास ली जाने लगी है। इसी क्रम में देश की हजारों महत्वपूर्ण समस्याओं को छोड़ कर अचानक ही बीफ पर प्रतिबन्ध का शगूफा उछाला गया क्योंकि आम तौर पर मांसाहारी हिन्दू उसी तरह बीफ नहीं खाते जिस तरह मुसलमान सुअर का मांस नहीं खाते। वैसे तो हिन्दुओं में वैष्णवों और जैन आदि किसी भी तरह का मांसाहार नहीं करते यहाँ तक कि इनके कई वर्गों में प्याज, लहसुन आदि खाना भी वर्जित है, पर बीफ का खाना, न खाना सीधा सीधा हिन्दू मुस्लिम, और हिन्दू ईसाई का विभाजन पैदा करता है। कुछ बुद्धिजीवी यदा कदा उनकी योजनाओं के आशयों को उजागर करने के लिए कुछ गम्भीर प्रश्न खड़े करते रहते हैं, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायधीश मार्कण्डेय काटजू भी उनमें से एक हैं उन्होंने बीफ खाने पर प्रतिबन्ध को साम्प्रदायिक होने से रोकने के लिए बयान दिया था कि मैं बीफ खाता हूं और भोजन का चुनाव मेरा अधिकार है। उनके इस बयान के उत्तर में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने किसी इलाकाई बाहुबली की तरह कहा कि मार्कण्डेय काटजू गुजरात में आकर बीफ खाकर दिखायें तो उन्हें

पता चल जायेगा।

उल्लेखनीय है कि देश और भाजपा में अमित शाह का कोई स्वतंत्र कद नहीं है। भाजपा अध्यक्ष पद अपनी जेब में रखने के लिए ही नरेन्द्र मोदी ने उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवा दिया और अपने प्रभाव से कृतज्ञ भाजपाइयों द्वारा स्वीकार भी करा लिया। वे मोदी के प्रतिनिधि के रूप में भाजपा अध्यक्ष हैं। अभी हाल ही में महाराष्ट्र और हरियाणा की भाजपा सरकारों ने बीफ खाने पर प्रतिबन्ध लगाया है जबकि गौबध देश के बहुत सारे राज्यों में प्रतिबन्धित है। अमित शाह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और अगर वे अपनी पार्टी की ओर से कोई बात कहते हैं तो वह एक राज्य तक सीमित नहीं हो सकती। उल्लेखनीय है कि उन पर जब कुछ गम्भीर आरोप लगे थे तो हाई कोर्ट ने उन्हें गुजरात प्रदेशबदर कर दिया था।

2013 में देश से गौमांस का निर्यात लगभग पन्द्रह हजार करोड़ था जिसमें पिछले वर्ष 15% की वृद्धि हुयी है। भाजपा शासित गोआ में बीफ पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है और लगाया भी नहीं जा सकता। उत्तर पूर्व से आने वाले मोदी सरकार के गृह राज्य मंत्री ने भी कहा है कि उनके प्रदेश में बीफ खाया जाता है और वे किसी के पसन्द के खान पान पर प्रतिबन्ध के खिलाफ हैं। सुप्रसिद्ध इतिहासकार राम शरण शर्मा ने हिन्दुओं के मान्य पुराणों से उद्धरण देकर साबित किया था कि प्राचीन काल में हिन्दुओं में गौमांस वर्जित नहीं था जिसका प्रतिवाद कभी संघ के इतिहासकार भी नहीं कर सके। जहाँ जो वस्तु कानूनी रूप से प्रतिबन्धित नहीं है उसके स्तेमाल पर देश के सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश को धमकी देना क्या देश की सत्तारूढ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को शोभा देता है? इस धमकी की भाषा भी जब खुद को क्षेत्र विशेष में शेर घोषित करने वाले अन्दाज में हो तो यह क्षेत्रीयवाद से अधिक कुछ नहीं है, जहाँ वे मानते हैं कि वहाँ देश का कानून नहीं उनकी मनमानी चलेगी।

भाजपा को भले ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त हो किंतु उसकी मानसिकता कभी भी राष्ट्रीय पार्टी जैसी नहीं रही। हिन्दी- हिन्दू- हिन्दुस्तान के विचार से पल्लवित पुष्पित यह पार्टी सत्ता मिल पाने के प्रति इतनी सशंकित रही है कि उसने कभी नहीं सोचा कि वह जिन झूठे आरोपों और वादों के सहारे जनता के पास समर्थन माँगने जा रही है उनसे सत्ता मिल जाने पर वह उन्हें कैसे पूरा करेगी। अटल बिहारी वाजपेयी ने तो स्पष्ट बहुमत न होने के बहाने समय गुजार लिया था किंतु मोदी सरकार के सामने तो स्पष्ट बहुमत ही समस्या की तरह सामने आ गया। यही कारण रहा कि बहुत सारे मामलों में उन्हें मुँह छुपाना पड़ा, यूटर्न लेना पड़ा, या साठ साल का कचरा साफ करने का बहाना लेना पड़ा। इसी तरह जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने गर्वीला गुजरात जैसा भावनात्मक नारा उछाला था, जो दूसरे राज्यों से प्रशासनिक श्रेष्ठता या औद्योगिक विकास में प्रतियोगिता न दर्शा कर, मराठा, राजपूताना की तरह जातीय श्रेष्ठता को प्रकट करता था। ये जातीय श्रेष्ठताएं देश की एकता के लिए बाधाएं हैं। इसी तरह जब मुख्यमंत्री मोदी का तत्कालीन केन्द्रीय सरकार से मिलने वाले सहयोग पर कुछ असहमतियां बनी थीं तो उन्होंने गुजरात से आयकर न चुकाये जाने की धमकी दे डाली थी। 2013 में जब केदारनाथ में प्राकृतिक आपदा आयी थी तो मोदी ने आपदा स्थल से गुजरातियों को निकाल लेने की शेखियां बघारी थीं जबकि दूसरे किसी राज्य के नेताओं ने आपदा के समय इस तरह की संकीर्णता नहीं दिखायी थी, और पूरे देश ने दिल खोल कर मदद की थी। अभी हाल ही में जब मुम्बई के मैटल व्यापारियों को कुछ समस्याएं आयीं तो मोदी के मित्र अडाणी ने उन्हें गुजरात में आकर व्यापार करने की सलाह ही नहीं दी अपितु उनके लिए अपनी ओर से जमीन भी दे दी। खीझ कर शिवसेना के सहयोग से चलने वाली महाराष्ट्र सरकार के भाजपाई मुख्यमंत्री को भी कहना पड़ा कि क्या अडाणी को महाराष्ट्र में व्यापार नहीं करना है।

जब देश में जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर के राज्य, नक्सलवाद प्रभावित आदिवासी क्षेत्र आदि में अलगाववाद सिर उठाये हुये है और राष्ट्रीय एकता पर संकट बना हुआ है तब देश के शिखर नेतृत्व की संकीर्णता देश को कहाँ ले जायेगी? इतना बड़ा देश ओखली में गुड़ फोड़ते हुए नहीं चल सकता, इसकी विविधता को देखते हुए सरकार को लोकतांत्रिक होना पड़ेगा व नेतृत्व की सामूहिकता का निर्माण करना पड़ेगा। आखिर अरुण शौरी को क्यों कहना पड़ा कि देश को एक तिकड़ी चला रही है। मोदी जनता पार्टी को भाजपा में वापिस लौटते हुए देश की अवधारणा को गुजरात की सीमा से बाहर निकालना पड़ेगा।  

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख में वक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारों को नहीं दर्शाते ।

 
 
 
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गुजरात
केदारनाथ
भाजपा
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अमित शाह
नरेन्द्र मोदी

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