NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
मुल्जिम और मुंसिफ का भेद मिटाती बयानबाजी
शायद यह संयोग ही हो कि सीबीआई द्वारा बाबरी मस्ज़िद ध्वंस के आरोपियों के खिलाफ अपील पर माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुनः सुनवाई का आदेश दिया है।
वीरेन्द्र जैन
27 Apr 2017
मुल्जिम और मुंसिफ का भेद मिटाती बयानबाजी
जब से मोदी सरकार द्वारा अपनी लोकप्रियता की कमी को दूसरे संवेदनशील मुद्दों से दबाये जाने की कोशिशें हुयीं हैं तब से राम जन्मभूमि वाले मामले को दुबारा से उभार दिया गया है। शायद यह संयोग ही हो कि सीबीआई द्वारा बाबरी मस्ज़िद ध्वंस के आरोपियों के खिलाफ अपील पर माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुनः सुनवाई का आदेश दिया है। इसी दौरान उत्तर प्रदेश में राम जन्मभूमि अभियान से जुड़े योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बन जाने से इसका विवाद नया रूप ले चुका है। सुब्रम्यम स्वामी की जल्दी सुनवाई की अपील पर तो सुप्रीम कोर्ट ने पूछ ही लिया है कि- आप कौन? यह बात अलग है कि अदालत के बाहर मामले को सुलटा लेने की सलाह पर इस बड़ी अदालत की मीडिया में बहुत आलोचना हुयी है।
 
बाबरी मस्जिद ध्वंस के मामले की पुनर्सुनवाई पर जहाँ प्रमुख अभियुक्तों में से लालकृष्ण अडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे पार्टी के मार्गदर्शक लोग चुप हैं वहीं उमा भारती बेचैन हैं और उस बेचैनी में बेतरतीब बयानबाजी कर रही हैं। उन्होंने कहा है कि राम मन्दिर के लिए मैं फाँसी पर चढने के लिए तैयार हूं। यह बयान भले ही भक्त किस्म के भावुक लोगों में कुछ साम्प्रदायिक उत्तेजना पैदा करे किंतु तथ्यात्मक रूप से बहुत असंगत है। किसी भी आरोप पर सजा तय करने का अधिकार आरोपी को नहीं होता है अपितु आरोप साबित हो जाने पर कानून के अनुसार उसकी सजा अदालत ही तय करती है, और उसे स्वीकार करने, न करने जैसा कोई विकल्प नहीं होता। राम मन्दिर का निर्माण कोई अपराध नहीं है और उसके लिए फाँसी तो क्या किसी भी तरह की सजा का कोई कानून नहीं है। देश और अयोध्या में हजारों राम या जानकी मन्दिर हैं। राम मन्दिर निर्माण का कोई मुकदमा भी किसी अदालत में नहीं चल रहा है। जो मुकदमा चल रहा है वह भूमि के स्वामित्व का मुकदमा है। उल्लेखनीय है कि जिस स्थान पर 6 दिसम्बर 92 को तोड़ी गयी मस्जिद स्थित थी उस पर ही एक वर्ग का कभी राम जन्मभूमि मन्दिर होने का विश्वास रहा है। उनका मानना है कि उक्त मन्दिर को तोड़ कर ही बाबर ने मस्जिद बनायी थी। कई सौ साल के इस विवाद में आजादी के बाद 1949 में एक रामभक्त कलैक्टर नायर ने रात्रि में मूर्ति रखवा दी। उल्लेखनीय है कि यह कलैक्टर बाद में भारतीय जनसंघ से चुनाव लड़ कर सांसद बने थे तथा उनके निधन के बाद उनकी पत्नी सांसद बनीं। तब से ही उस सम्पत्ति पर अधिपत्य का मुकदमा चलता रहा है। उस स्थल का ताला खोलने का आदेश भी उस न्यायाधीश ने दिया था जिसकी रामभक्ति की चर्चा यह थी कि अयोध्या भूमि में प्रवेश करते ही वे कार ही में अपने जूते उतार लेते थे और अयोध्या नगर में नंगे पैर चलते थे, क्योंकि वे राम की नगरी में जूते पहिन कर चलने को पाप समझते थे। इस सब के बीच में भाजपा ने रथयात्राएं निकाल कर उस इमारत को ध्वंस के लिए धर्मभीरुओं को भावुक किया और भीड़ एकत्रित कर उसे तोड़ दिया। इस उकसावे में भाजपा के सभी नेताओं की भूमिका रही जिसमें प्रमुख भूमिका अडवाणी, उमाभारती, मुरली मनोहर जोशी, गोविन्दाचार्य, [दिवंगत] विजया राजे सिन्धिया आदि की मानी गयी। उत्तेजक नारों वाली इस यात्रा के परिणाम स्वरूप देश भर में दंगे हुये, जिससे उपजे ध्रुवीकरण का लाभ भाजपा को मिला और वे संसद में दो से दो सौ तक पहुँच गये। इस ध्रुवीकरण का सीधा लाभ काँग्रेस और समाजवादी पार्टी ने भी उठाया और बिना किसी राजनीतिक कार्य के उन्हें आतंकित और क्रुद्ध मुसलमानों के वोट थोक में मिलने लगे व जनता की समस्याएं चुनावी एजेंडों से बाहर होती गयीं। मस्जिद ध्वंस की जाँच के नाम पर लिब्राहन आयोग बैठाया गया जिसने उठने की जरूरत ही नहीं समझी और जिसे लगभग तीस बार समय विस्तार दिया गया।
 
लिब्राहन आयोग ने जब जाँच के दौरान सम्मन भेजे तो लम्बे समय तक उन्हें टाला गया, और जब उपस्थिति दी तो उमा भारती के उत्तरों का नमूना ही पूरी कहानी अपने आप कह देता है। जब आयोग ने पूछा कि 6 दिसम्बर के दिन क्या हुआ था तो बचपन में ही राम चरित मानस कंठस्थ कर लेने की प्रतिभा वाली उमा भारती का उत्तर था कि उन्हें कुछ याद नहीं है कि क्या हुआ था। दूसरी बार जब आयोग ने उनसे पूछा कि मस्जिद किसने तोड़ी तो उनका उत्तर था कि भगवान ने तोड़ी। जब आयोग की समझ में आ गया कि कोई नहीं चाहता कि वह अपनी रिपोर्ट दे तो उसने भी इस संवेदनशील मुद्दे को कोर्ट की तरह समय देकर समाधान वाला रास्ता अपनाना जरूरी समझा।
अब उमा भारती बाबरी मस्जिद के नाम से खड़े विवादास्पद ढाँचे को तोड़े जाने की सुनवाई को राम मन्दिर निर्माण से बदल कर बता रही हैं व कृत्य के लिए संभावित सजा को फाँसी की सजा बता कर भावुक भक्तों पर भावनात्मक दबाव बना रही हैं। वे भाजपा की राजनीति में सबसे अलग और दुस्साहसी महिला हैं, जो भाजपा की संरक्षक विजया राजे सिन्धिया द्वारा आग्रह कर पार्टी में लायी गयीं थीं। उन्हें औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने का अवसर नहीं मिला किंतु उन्होंने अपने प्रयास से कई भाषाएं और राजनीति सीखी। कभी भाजपा के थिंकटैंक माने जाने वाले गोबिन्दाचार्य को गुरु बना कर उन्होंने राजनीतिक ज्ञान प्राप्त किया। स्वभाव से मुखर और ज़िद्दी होने के कारण उन्हें चापलूसी करना सख्त नापसन्द है। यही कारण है कि भाजपा में न तो कोई कद्दावर उनका मित्र है और न ही वे किसी कद्दावर की मित्र है। सुषमा स्वराज से उनकी प्रतिद्वन्दिता को सब जानते हैं। अरुण जैटली के कारण ही उन्होंने अटल- अडवाणी को प्रैस के सामने ही खरी खोटी सुनायी थीं, और बाद में नई पार्टी बनायी थी। वैंक्य्या नायडू को उन्हीं के कारण राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देना पड़ा था। सुन्दरलाल पटवा से उनकी दुश्मनी जग जाहिर रही है, यही कारण रहा कि पटवा जी के पट-शिष्य शिवराज सिंह से उनकी कभी नहीं पटी। बाबूलाल गौर को उन्होंने ही यह सोच कर मुख्यमंत्री बनवाया था कि समय आने पर कुर्सी छोड़ देंगे पर जब उन्होंने उनके कहने पर त्यागपत्र नहीं दिया तो वे उनके विरुद्ध हो गयीं व बार बार वादा तोड़ने वाली पार्टी से निराश हो गयीं।  कैलाश जोशी का टिकिट कटवा कर उन्होंने भोपाल से लोकसभा सीट का टिकिट प्राप्त किया था। कभी नरेन्द्र मोदी को विकास पुरुष की जगह विनाश पुरुष बतलाया था। संघ के सुरेश सोनी जैसे कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी भी उनसे खुश नहीं रहते क्योंकि दूसरे नेताओं की तरह उन्होंने खुश रखने की राजनीति नहीं की। दिग्विजय सिंह के मानहानि वाले प्रकरण में उन्हें छोड़ कर शेष नेता समझौता कर गये हैं, किंतु उन्होंने अपने स्वाभिमान को बचा कर रखा।
 
शायद उन्हें फिर खतरा लग रहा होगा कि भाजपा नेतृत्व उन्हें अकेला छोड़ कर कहीं अपनी अपनी मुक्ति का रास्ता न तलाश ले। हो सकता है कि ऐसी दशा में वे फिर वैसा ही बयान देकर सबको कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करें जैसा कि उन्होंने दिग्विजय सिंह मानहानि वाले मामले में दूसरे नेताओं के समझौते के बाद दिये बयान में किया था। भले ही लक्ष्मीकांत शर्मा वरिष्ठों को बचाने के अपने बयान से आगे नहीं गये हों, किंतु साध्वी वेष में रहने वाली उमा भारती शायद चुप न रहें। आखिर शिवराज सिंह चौहान के तेज विरोध के बाद भी भाजपा को उन्हें वापिस लेना पड़ा था, और मोदी को  कैबिनेट मंत्री भी बनाना पड़ा।
राम जन्मभूमि
भाजपा
लाल कृष्ण आडवानी
मुरली मनोहर जोशी
उमा भारती
आदित्यनाथ

Related Stories

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

आरक्षण खात्मे का षड्यंत्र: दलित-ओबीसी पर बड़ा प्रहार

झारखंड बंद: भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त विरोध

झारखण्ड भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल, 2017: आदिवासी विरोधी भाजपा सरकार

यूपी: योगी सरकार में कई बीजेपी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप

मोदी के एक आदर्श गाँव की कहानी

क्या भाजपा शासित असम में भारतीय नागरिकों से छीनी जा रही है उनकी नागरिकता?

बिहार: सामूहिक बलत्कार के मामले में पुलिस के रैवये पर गंभीर सवाल उठे!


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License